जिस पर गिरकर उदर दरी से तुमने जन्म लिया है जिसका खाकर अन्न सुधा सम नीर समीर पिया है ।वह स्नेह की मूर्ति दयामयी माता तुल्य मही है ?पैदकर जिस देश जति में तुमको पला पोसा । किए हुए है वह निज हित का तुमसे बड़ा भरोसा उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा फिर दे सकते हो वसुधा की शेष स्वजीवन सरा
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dharti , bhoomi, earth,
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