जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है
जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम नीर-समीर पिया है।
वह स्नेह की मूर्ति दयामयी माता-तुल्य मही है
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
पैदाकर जिस देश-जाति ने तुमको पाला-पोसा।
किए हुए है वह निज हित का तुमसे बड़ा भरोसा
उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा
फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा
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Answer:
जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम नीर-समीर पिया है।
वह स्नेह की मूर्ति दयामयी माता-तुल्य मही है
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
पैदाकर जिस देश-जाति ने तुमको पाला-पोसा।
किए हुए हैं वह निज हित का तुमसे बड़ा भरोसा
उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा
फिर दे सकते हो वसुधा को शे
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Answer:निम्नलिखित अपठित पद्यांश को सम्यक पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है, जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम नीर-समीर पिया है । वह स्नेह की मूर्ति दयामयी माता-तुल्य मही है उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है ? पैदा कर जिस देश जाति ने तुमको पाला-पोसा । किए हुए है वह निज हित का तुमसे बड़ा भरोसा उससे होना उऋण प्रथम है सत कर्त्तव्य तुम्हारा
फिर दे सकते हो बसुधा को शेष स्वजीवन सारा ।
प्र.1 पृथ्वी किसके समान है तथा क्यों ?
प्र.2 व्यक्ति को देश के प्रति अपना जीवन क्यों अर्पित कर देना चाहिए?
प्र.3 कवि ने मातृभूमि के प्रति किस कर्त्तव्य का स्मरण कराया है ?
प्र.4 मनुष्य का सत्कर्त्तव्य क्या है ?
प्र.5 कविता में पृथ्वी के दो पर्याय शब्दों का प्रयोग हुआ है, उन्हे छॉटकर लिखिए । प्र.6 पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए ।