Hindi, asked by sristykumari45, 6 months ago

जैसा संग वैसा रंग पर 80-100 शब्दों में लघु कथा लिखे।​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

यदि आप संतों से जुड़ेंगे तो भक्ति का आपके जीवन में प्रारंभ होगा। किसी ने ठीक ही तो कहा है कि जैसा करे संग वैसा चढ़े रंग। संत महापुरुष कहते थे कि यह कथा भी बड़ी विचित्र चीज है। न जाने कितने डॉक्टरों का घर जुड़वा दिया, कितने इंजीनियरों का घर जुड़वा दिया! लेकिन आप मत घबराना। जिसका छूटना है, वह छूट ही जाएगा और जिसका नहीं छूटना है, उसे तो भगवान भी आकर कथा सुनाएं तो भी नहीं छूटेगा!

अब सवाल यह उठता है कि जिसकी संगति की जाए वह संत कौन है? ग्रंथों में अनेक जगह संतों के लक्षण लिखे हैं लेकिन आप सीधी बात समझ लें कि संत वह है जिसके जीवन में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य मौजूद है। संत का अर्थ है वह व्यक्ति है जो भगवान के लिए सर्वस्व का त्याग कर चुका है या जो सर्वस्व छोड़ सकता है या फिर जिसका सब कुछ छूट रहा है। संत वह है जो पूरे समय भगवान का अनुभव कर रहा है, उनकी लीला का दर्शन कर रहा है। भगवान की अनुभूति से जिसका जीवन आनंदित है।

संत तो हमेशा ही मौजूद होते हैं, खोजने वाला चाहिए। संत यदि आपको मिल गए और संत के प्रति आपका समर्पण हो गया तो यह देखे बगैर कि आपकी योग्यता है या नहीं। संत आपकी सिफारिश भगवान से कर देंगे और भगवान आपको स्वीकार कर लेंगे। आप कहेंगे कि कहीं ऐसा हुआ है?

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Answered by saeephunde
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Answer:

हमारी जिंदगी मे अच्छी संगति भी बहुत मायने रखती हैं।इसलिये बोला जाता है जैसा संग वैसा रंग ।

यदि इंसान अच्छी संगति मे हमेशा रहेगा तो कितनी भी बड़ी समस्या क्यों ना हो वह आसानी से समस्या से बाहर आ जायेगा क्योकि अच्छी संगति से हमेशा सकारात्मक भाव व हिम्मत आती हैं । आध्यात्मिक जगत की बात करे तो ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जायेंगे जहॉ संगति से हिंसक पशु भी शांत होकर बैठ जाता हैं जैसे कि भगवान महावीर । वह जहॉ भी होते वहॉ से कुछ किलोमीटर दूरी तक उनकी आभा का इतना प्रभाव पड़ता था कि शेर भी अहिंसक हो जाता । उनको सॉप काटे जाने पर रक्त की जगह दूध का निकलना ।ये सभी बाते दर्शाती है कि वह कितने भव्य आत्माये थी ।उनकी संगति तो क्या ,अंतिम समय मे उनकी वाणी सुनते ही कितने लोग मोक्ष गति को प्राप्त हो गये । इसी तरह बौद्ध काल मे अंगुलीमाल की कथा आती हैं ।जो इस प्रकार हैं ….

बौद्ध काल के समय एक अंगुलिमाल नाम का डाकू था जो राजा प्रसेनजित के राज्य श्रावस्ती के सुनसान जंगलों में राहगीरों को मार देता था और उनकी उंगलियों को काटकर उसकी माला बनाकर पहनता था । वही डाकू जो बाद मे भगवान बुद्ध की संगति मे आने से संत बन गया । कथा मे बताया गया कि अंगुलीमाल जिस वन मे रहता था एक समय भगवान बुद्ध उसी वन से जाने को उद्यत हुए तो अनेक लौगो तथा श्रमणों ने उन्हें समझाया कि वे अंगुलिमाल जहॉ रहता है उस क्षेत्र में न जायें। अंगुलिमाल का सबको बहुत ज्यादा भय था । यहॉ तक कि महाराजा प्रसेनजित भी उसको वश में नहीं कर पाए। भगवान बुद्ध मौन धारण कर चलते रहे। कई बार रोकने पर भी वे चलते ही गए। अंगुलिमाल ने दूर से ही भगवान को आते देखा। वह सोचने लगा आश्चर्य है मेरे यहॉ से गुज़रने वाले पचासों आदमी भी मिलकर चलते हैं तो भी मेरे हाथ में पड़ जाते हैं, पर यह श्रमण अकेला ही चला आ रहा है, इसको मेरा कोई भी डर नही ,मानो मेरा तिरस्कार करने ही आ रहा है। क्यों न इसे जान से मार दूँ।’

Explanation:

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