जिस तरह कृष्णा के किनारे सातारा में जन्म होने के कारण मैं अपने को कृष्णापुत्र कहलाता हूँ, उसी तरह लहति
की गोद में पला हुआ होने के कारण मैं अपने को सापुत्र भी कहलाता हूँ। सह्याद्रि तो भारत भूमि की पश्चिम की री
है। खभात से लेकर कन्याकुमारी तक जो पश्चिम सागर फैला हुआ है असका स्वागत करने का, उसके साथ बात करन
का अधिकार साद्रि का ही है और पश्चिम सागर भी हर साल ग्रीष्मकाल के बाद अपने लवण जल से मीठे बादल बनाकर
सहादि का अभिषेक करता रहता है। प्रकृतिमाता का वह बड़ा वार्षिक महोत्सव है। सह्याद्रि के ऊँचे-ऊँचे शिखर पर
जब ये बादल बरसने लगते हैं तब हम पर्वतपुत्र आनंदविभोर हो जाते हैं और उन्मत्त होकर नाचने लगते हैं। सहाटे की
नदियाँ अपने पिता का गौरव कभी नहीं भूलतीं। पक्षपातरहित पूर्व और पश्चिम दोनों सागरों को अपनी अयाजलियाँ आयेत
करती रहती हैं।
1) कारण लिखिए।
1) लेखक का स्वयं को सह्यपुत्र कहलाना
2) पर्वत पुत्र का आनंदविभोर होना .
(3) 'पर्यावरण संतुलन में पर्वतों की भूमिका' 6 से 8 वाक्यों में अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
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Today's worksheet of maths chp 5. Page no 62 do it in book and copy with date and cw and in a good handwriting.
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