जिस धूलि को कवियों ने अमर किया है वह हाथी-घोड़ों के पग-संचालन से उत्पन्न होने वाली धूल है।
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यह कविता की विडंबना(उपहास की बात) थी और गाँवों में भी जिस धूलि को कवियों ने अमर किया है, वह हाथी-घोड़ों के पग-संचालन(पैरों के हिलने) से उत्पन्न होनेवाली धूल नहीं है, वरन् गो-गोपालों के पदों(पाँवों) की धूलि है। सरलार्थ :- कवियों ने गोधूलि पर बहुत लिखा है।
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