जिसके अरुण कपोलो की मतवाली सुंदर छाया में । अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुनाय में । उसकी स्मृति पथ्य बानी ह थके पथिक की पंथा की।
Isme Ras Ki Pehchan Kariye
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यह शृंगार रस है क्योंकि यहां सुहाग की बात की जा रही है |
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