जिसने मन जीत लिया बस उसने जीत लिया संसार पर निबंध
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जिसने मन जीत लिया बस उसने जीत लिया संसार
व्यक्ति का यह स्वभाव होता हैं कि वह विजेता बनें। इस होड़ में जीते हुए वह सब कुछ जीत लेना चाहता हैं। कोई धन सम्पदा अर्जित करना चाहता हैं तो कोई साम्राज्य, कोई खेल में जीतना चाहता हैं तो कोई विद्वता में। हर कोई जीत पाने की चाह में भाग रहा हैं। लेकिन व्यक्ति ज्यों ज्यों सफलता प्राप्त करता जाता हैं उसकी यह तृष्णा बढ़ती जाती हैं, और उसकी जीतने की लालसा कभी पूरी नहीं हो पाती। एक समय ऐसा भी आता हैं जब सब कुछ उसके हाथ से निकलता हुआ प्रतीत होता हैं, और उसे लगता हैं कि उसने वो दौड़ दौड़ी हैं जिसका अन्त हार में ही समाप्त होता हैं।
इस गूढ़ प्रश्न पर विचार कर भारतीय मनीषियों ने इसका उत्तर ढूढ़ा कि आखिर वास्तविक जीत कब होगी? उत्तर बाहर नहीं, मनुष्य के अन्दर बसा था। मन को जीतकर। हमारे शरीर में छः ज्ञानेन्द्रियां हैं,छठी हैं मन। यदि व्यक्ति ने मन को जीत लिया तो उसने सब कुछ जीत लिया। महावीर स्वामी का कथन है कि " जैनम जायति शासनम। " यदि मनुष्य अपनी इंद्रियाें और मन को जीत लेता हैं तो उसने सब कुछ जीत लिया हैं। वह अपने मन पर शासन की बात कह रहे हैं।
यदि व्यक्ति मन को जीत लेता हैं तो वह योगी बन जाता हैं। संसार की सारी सिद्दियां प्राप्त कर सकता हैं और मोक्ष का मार्ग खोज लेता हैं।
मन को जीतने का दूसरा रूप भी हैं। इसमें स्वयं को मन को जीतने के अलावा दूसरों के मन को भी जीतना हैं। परोपकार एवं वसुधैव कुटम्बकम की भावना के साथ इसे जीता जा सकता हैं। शायद इसी के लिए भारत संस्कृति में आश्रम व्यवस्था की स्थापना की गई थी। सम्राट अशोक ने कई युद्ध जीते थे, लेकिन आज उन्हें हम याद करते है या महान मानते हैं तो सिर्फ इसी के लिए कि कलिंग युद्ध के बाद उन्होने दूसरों का मन जीत लिया था।
सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य, नियम और प्राण शक्ति के द्वारा व्यक्ति स्वयं अपना और दूसरों का मन जीत सकता हैं। महात्मा ईंसा के " हे ईश्वर इन्हे माफ करना " शब्दों ने संसार का मन जीत लिया था।
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात ये हैं कि स्वयं का मन जीते बिना दूसरों का मन नहीं जीता जा सकता हैं।
इस परिपेक्ष्य मेंं यह कथन सर्वथा उचित हैं कि जिसने मन जीत लिया उसने जीत लिया संसार।