जो सत्य है सुंदर है वही कला है किस विद्वान ने कहा है
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punita sah
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अरस्तू उसे अनुकरण कहते हैं।
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अर्थात् 'कला' न ज्ञान है,न शिल्प है, न ही विद्या है, बल्कि जिसके द्वारा हमारी आत्मा परमानंद का अनुभव करती है, वही कला है। भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में प्रगट किए गए उक्त भाव कला की भारतीय विचारधारा को अभिव्यक्त करते हैं। परम आनंद की प्राप्ति मनुष्य के जीवन का उद्देश्य होता है तथा इसे प्राप्त करने की इच्छा हमारी आत्मा को होती है एवं वह हमारी अंतरात्मा से ही उद्भुत भी होता है, उसके प्रेरक तत्त्व इस बाह्य सृष्टि में मौजूद रहते हैं। 'सौंदर्य' परम आनंद का सर्वाधिक शक्तिशाली उद्दीपक है, जो किसी वस्तु के प्रति भावात्मक अनुभूति को उत्पन्न कर आत्मिक सुख प्रदान करता है। प्लेटो के विचार से-“वस्तु का सौंदर्य उसी में वह चीज है जो हमें उसकी प्रशंसा करने हेतु बाध्य कर देती है तथा हममें उसे पाने की लालसा उत्पन्न करती है।" अन्य पाश्चात्य विचारकों ने भी सौंदर्य के विषय में अपने विचार प्रकट किये हैं|