Hindi, asked by rashijaiswal14, 1 year ago

जातिगत भेदभाव पर निबंध लेखन​

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Answered by MahakAndAkul
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Answer:

जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजूद है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं लेकिन फिर भी जाति व्यवस्था ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है। भारतीय समाज में सदियों से कुछ सामाजिक बुराईयां प्रचलित रही हैं और जाति व्यवस्था भी उन्हीं में से एक है। हालांकि, जाति व्यवस्था की अवधारणा में इस अवधि के दौरान कुछ परिवर्तन जरूर आया है और इसकी मान्यताएं अब उतनी रूढ़िवादी नहीं रही है जितनी पहले हुआ करती थीं, लेकिन इसके बावजूद यह अभी भी देश में लोगों के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर असर डाल रही है। यहां भारत में जाति व्यवस्था विषय पर अलग-अलग शब्द सीमा के कुछ सरल लेकिन जानकारीपूर्ण निबंध दिए जा रहे हैं जिनकी मदद से आप अपनी कक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।

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MahakAndAkul: भारत में जाति व्यवस्था प्राचीन काल से प्रचलित रही है और इसकी अवधारणा को सत्ता में बैठे लोगों द्वारा सदियों से अलग-अलग तरीकों से विकसित किया गया है। विशेष रूप से मुगल शासन एवं ब्रिटिश राज के दौरान इस व्यवस्था में बड़े परिवर्तन किए गए। इसके बावजूद, आज भी लोगों के साथ उनकी जातियों के आधार पर समाज में अलग-अलग ढंग से व्यवहार किया जा हा है। वर्ण एवं जाति - सामाजिक व्यवस्था के मूल रूप से दो अलग-अलग अवधारणएं है।

वर्ण चार व्यापक सामाजिक विभाजन को
MahakAndAkul: संदर्भित करता है — ब्राह्मण (शिक्षक / पुजारी), क्षत्रिय (राजा / योद्धा), वैश्य (व्यापारी वर्ग) और शूद्र (मजदूर / सेवक) लोकिन धीरे- धीरे यह और भी पतन की स्थिति में चला गया एवं जन्म के आधार पर जातियों में विभाजित हो गया। जाति आम तौर पर लोगों के व्यापार या समुदाय के हिसाब से तय की जाती थी लेकिन आज यह वंशानुगत हो चुकी है।
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Answered by bhatiamona
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                                जातिगत भेदभाव पर निबंध

जातिगत भेदभाव आज हमारे समाज के लिए एक कोढ़ बन चुका है। यह मानवता के नाम पर कलंक है। भगवान ने सभी मनुष्यों को एक समान बनाया है। कोई ऊंच-नीच या छोटा-बड़ा नहीं होता। लेकिन जातिगत भेदभाव के नाम पर मनुष्य को ऊंचा और नीचा बना दिया जाता है।

हमारे भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। तब इसका उद्देश्य कुछ अलग था। तब की सामाजिक परिस्थितियां अलग थी और व्यवसाय के बंटवारे हेतु वर्ण व्यवस्था का प्रचलन हुआ था। लेकिन कालांतर में इस वर्ण व्यवस्था ने जातिगत भेदभाव का वीभत्स रूप ले लिया और आज जातिगत भेदभाव एक मुख्य समस्या बन गया है।

कुछ लोगों को कुछ नीची जाति का मानकर उन्हें धार्मिक स्थलों पर जाने से रोक दिया जाता है और समाज की प्रमुख जगहों पर तथाकथित ऊंची जाति वाले लोगों ने अपना प्रभुत्व जमा के रखा है। यह सारे भेदभाव एक आधुनिक और लोकतांत्रिक समाज और आज के परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल ही अनुचित है। यह देश के विकास में बाधक हैं।

आरक्षण नामक व्यवस्था इसी जातिगत भेदभाव के कारण उत्पन्न हुई, नहीं तो सरकारी नौकरियों में आरक्षण करवाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती और योग्यता ही पैमान होती आरक्षण नही।

जब भगवान ने मनुष्य को कुछ भी देने में भेदभाव नहीं किया है। जब प्रकृति मनुष्य को कुछ भी देने में भेदभाव नहीं करती तो हम कौन होते हैं, मनुष्य को ऊंच-नीच के आधार पर बांटने वाले। इसलिए जातिगत भेदभाव किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक के समान है और इसका खात्मा बहुत जरूरी है।

आज जरूरत है कि हमारे समाज से जल्दी जातिगत भेदभाव को पूरी तरह मिटाया जाए। तभी यह देश तरक्की कर पाएगा।

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