जाते।
हाते।
मीराबाई
च।
पद
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरौ न कोई।
जाके, सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
छाँड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि-बैठि लोक लाज खोई॥
अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई।
दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई॥
भगति देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीराँ लाल गिरिधर तारो अब मोई॥ १॥
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