जाति की कोई दो परिभाषाएं
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एच. हट्टन के अनुसार- “जाति एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत एक समाज अनेक आत्मकेन्द्रित एवं एक-दूसरे से पूर्णत: पृथक् इकाइयों (जातियों) में विभाजित रहता है, इन इकाइयों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध ऊँच-नीच के आधार पर सांस्कारिक रूप से निर्धारित होते हैं।”
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एच. हट्टन के अनुसार- “जाति एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत एक समाज अनेक आत्मकेन्द्रित एवं एक-दूसरे से पूर्णत: पृथक् इकाइयों (जातियों) में विभाजित रहता है, इन इकाइयों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध ऊँच-नीच के आधार पर सांस्कारिक रूप से निर्धारित होते हैं।”
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