जेत लेखन
मुर्दो के आधार पर कहानी लिखो
एक जंगल में
उसपर पक्षियों
विषैले बाण,पेड़ के तने
में घुसने से पेड़ का सूख जाना
विशाल घना वृक्ष
के घोंसले
सारे पक्षियों का
एक तोते का उसी
दूसरे तोते का उड़ चलने
का आग्रह करना
इनकार
इधर-उधर उड़ जाना
पेड़ पर बैठे रहना
'इसे छोड़कर
कहना मेरी दो पीढ़ियों
का इसी पेड़ पर निवास'
शीर्षक
जाना असंभव
Answers
विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम ने हमारे सामने कई चुनौतियां भी खड़ी की हैं. जिससे निपटना हमारे लिए आसान नहीं है. विकास की महत्वाकांक्षी इच्छाओं ने हमारे सामने पर्यावरण की विषम स्थिति पैदा की है. जिसका असर इंसानी जीवन के अलावा पशु-पक्षियों पर साफ दिखता है. इंसान के बेहद करीब रहने वाली कई प्रजाति के पक्षी और चिड़िया आज हमारे बीच से गायब हैं. उसी में एक है स्पैरो यानी नन्ही सी वह गौरैया. गौरैया हमारी प्रकृति और उसकी सहचरी है. गौरैया की यादें आज भी हमारे जेहन में ताजा हैं. कभी वह नीम के पेड़ के नीचे फूदकती और अम्मा की तरफ से बिखेरे गए चावल या अनाज के दाने को चुगती. नवरात्र में अम्मा अक्सर मिट्टी की हांडी नीम के पेड़ तले गाड़ती और चिड़िया के साथ दूसरे पक्षी अपनी प्यास बुझाते. लेकिन बदलते दौर और नई सोच की पीढ़ी में पर्यावरण के प्रति कोई सोच ही नहीं दिखती है. अब बेहद कम घरों में पक्षियों के लिए इस तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं.
प्यारी गौरैया कभी घर की दीवार पर लगे आइने पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मारती तो की कभी खाट के नजदीक आती. बदलते वक्त के साथ आज गौरैया का बयां दिखाई नहीं देता. एक वक्त था जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में घोसले लटके होते और गौरैया के साथ उसके चूजे चीं-चीं-चीं का शोर मचाते. बचपन की यादें आज भी जेहन में ताजा हैं लेकिन वक्त के साथ गौरैया एक कहानी बन गई है. उसकी आमद बेहद कम दिखती है. गौरैया इंसान की सच्ची दोस्त भी है और पर्यावरण संरक्षण में उसकी खास भूमिका भी है. दुनिया भर में 20 मार्च गैरैया संरक्षण दिवस के रुप में मनाया जाता है. प्रसिद्ध पर्यावरणविद मो. ई दिलावर के प्रयासों से इस दिवस को चुलबुली चंचल गौरैया के लिए रखा गया. 2010 में पहली बार यह दुनिया में मनाया गया. प्रसिद्ध उपन्यासकार भीष्म साहनी जी ने अपने बाल साहित्य में गैरैया पर बड़ी अच्छी कहानी लिखी है. जिसे उन्होंने गौरैया नाम दिया है. हालांकि, जागरुकता की वजह से गौरैया की आमद बढ़ने लगी है. हमारे लिए यह शुभ संकेत है.
गौरैया का पसंद है साथियों का झुंड...
गौरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी है. इंसान की भोगवादी संस्कृति ने हमें प्रकृति और उसके साहचर्य से दूर कर दिया है. विज्ञान और विकास हमारे लिए वरदान साबित हुआ है. लेकिन, दूसरा पहलू कठिन चुनौती भी पेश किया है. गौरैया एक घरेलू और पालतू पक्षी है. यह इंसान और उसकी बस्ती के पास अधिक रहना पसंद करती है. पूर्वी एशिया में यह बहुतायत पायी जाती है. यह अधिक वजनी नहीं होती हैं. इसका जीवन काल दो साल का होता है. यह पांच से छह अंडे देती है. आंध्र यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में गौरैया की आबादी में 60 फीसदी से अधिक की कमी आयी है. ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसाइटी आफ प्रोटेक्शन आफ बर्डस‘ ने इस चुलबुली और चंचल पक्षी को ‘रेड लिस्ट‘ में डाल दिया है. दुनिया भर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गौरैया की आबादी घटी है. गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास सबसे अधिक जिम्मेदार हैं. गौरैया पासेराडेई परिवार की सदस्य है. लेकिन इसे वीवरपिंच का परिवार का भी सदस्य माना जाता है. इसकी लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है. इसका वनज 25 से 35 ग्राम तक होता है. यह अधिकांश झुंड में रहती है. यह अधिक दो मिल की दूरी तय करती है. गौरैया को अंग्रेजी में पासर डोमेस्टिकस के नाम से बुलाते हैं. मानव जहां-जहां गया गौरैया उसका हम सफर बन कर उसके साथ गयी. शहरी हिस्सों में इसकी छह प्रजातियां पाई जाती हैं. जिसमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिंउ स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल हैं. यह यूरोप, एशिया के साथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में मिलती है. इसकी प्राकृतिक खूबी है कि यह इंसान की सबसे