जाति प्रभाव भारतीय समाज में बेरोजगारी का एक कारण कैसे बनती रही है क्या ऐसी भी स्थिति आज भी है 250-300 शब्दो मे ।
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हालाँकि, 2011-12 के बाद हमारे पास राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) से रोज़गार के रुझान नहीं हैं, फिर भी महत्वपूर्ण सबूत बताते हैं कि इस अवधि में भारत की नौकरी चुनौती बदतर हो सकती है। रोजगार सृजन की धीमी गति एक अर्थव्यवस्था में कार्यबल पर अधिक से अधिक दुख का सामना करती है। हालांकि यह पीड़ा सभी श्रमिकों के लिए समान नहीं है। अनुसूचित जाति (SC), जो भारत में सामाजिक सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर हैं, सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। सामाजिक भेदभाव और मौजूदा सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को श्रम बाजार में एससी से होने वाले नुकसानों से जोड़ा जाता है।
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...जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी का भी कारण बनती रही है। जब समाज किसी व्यक्ति को जाति के आधार पर किसी एक पेशे में बाँध देता है और यदि वह पेशा उस व्यक्ति के लिए अनुपयुक्त हो या अपर्याप्त हो तो उसके सामने भुखमरी की स्थिति खड़ी हो जाती है। जब जाति प्रथा के बंधन के कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता नहीं होती तब भला उसके सामने भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है। भारतीय समाज पैतृक पेशा अपनाने पर ही जोर देता है भले इस पेशे में वह पारंगत न हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनती रही है।
आज इस स्थिति में परिवर्तन आ रहा है। आज व्यक्ति को अपना पेशा चुनने या बदलने का अधिकार है। सरकार की आरक्षण नीति से भी स्थिति में बदलाव आया है। अब भारतीय समाज का उतना बंधन नहीं रह गया है।
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