) जाती प्रथा के प्रमुख दोषों का वर्णन कीजिए ?
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जाती प्रथा के प्रमुख दोषों
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कालांतर में जाति व्यवस्था के चलते अनेक सामाजिक दोष पैदा हो गए | इसने समाज को उच्च और निम्न जातियों में विभाजित कर दिया | ब्राह्मण सामाजिक सीढ़ी की सबसे ऊपर वाली कड़ी पर जा बैठे | उनके निचे क्षत्रिय रहे फिर वैश्य शूद्र | इस तरह सामाजिक भेदभाव की बुनियाद पड़ गई | इस सामाजिक व्यवस्था ने धीरे-धीरे आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित किया | क्षत्रिय व्यवस्था के राजा बने, वे योद्धा थे इसलिए सीमान्त क्षेत्रीय शासक फिर जागीरदार | ब्राह्मण को भूमि दान में मिलती रही | वैश्य तो कृषक भी थे और व्यापारी भी | लेकिन सबसे दयनीय स्थिति शूद्रों की थी | वे भूमिहीन सेवक रहे | इस प्रकार विभाजन से उच्च जाति के लोगों द्वारा निम्न जाति के शोषण को प्रोत्साहन मिलने लगा | शूद्रों के साथ बुरा व्यवहार होने लगा | उन्हें सभी प्रकार के कार्य करने पड़ते थे | जैसे कपड़े साफ़ करना, पैखाना साफ़ करना, मरे मवेशियों की खाल निकलना | उन्हें अस्पृश्य समझा जाने लगा | इसी तरह कोई मजदूर किसी से कर्ज लेता है तो उसे सूद भरना पड़ता है | कभी-कभी सूद नहीं दे पाता है तो वह काम करके सधाता है | लेकिन जब उनकी मजदूरी से कर्ज में लिए गए मूलधन और सूद की पूरी तरह भरपाई नहीं होती तो वह महाजन के साथ बँध जाता | उसकी आजादी ख़त्म हो जाती है | वह दास बन जाता | इन्हे बंधुओं बनाना पड़ता है | बाप जब न कर्ज और न ही सूद सधा पाता तो वह दायित्त्व उसके बेटे पर आ जाता | इस तरह वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बंधुआ मजदूर बना दिए गए|
जातिगत भेदभाव इतने कठोर हो गए की समाज पूर्णतया अलग जमातों में विभाजित हो गया | उत्कृष्ट बुद्धि से संपन्न और विद्यार्जन में रूचि रखने वाला क्षत्रिय ब्राह्मणवाला कार्य नहीं कर सकता था | चूँकि उसका जन्म क्षत्रिय-कुल में हुआ था इसलिए वह क्षत्रिय ही रहेगा और वही व्यवसाय अपनाएगा | इसी प्रकार कोई शूद्र चाहे कितना ही बुद्धिमान और प्रतिभाशाली हो उसे हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथों को स्पर्श तक करके के अनुमति नहीं थी, उनके पढ़ने की बात तो दूर थी |
जाति-प्रथा से आर्थिक विकास में भी अत्यधिक बाधा पड़ी | जो व्यक्ति जिस प्रकार में जन्म लेता था वह उस परिवार के जातिगत व्यवसाय को अपनाने के लिए मजबूर था | उसके जन्म के समय ही निश्चित हो जाता था की वह क्या करेगा, चाहे उसकी योग्यता, रूचि और देश की अर्थव्यवस्था की मांग कुछ भी रही हो | वह अपनी रूचि के अनुसार अपना व्यवसाय नहीं बदल सकते था | इस प्रकार जाति-व्यवस्था में व्यक्ति को अपनी पसंद का व्यवसाय चुनने स्वतंत्रता नहीं रही |
जाति-प्रथा ने भारतीय समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर दिया | इसका देश सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा | जातिगत भावना की कट्टरता ने लोगों को संकीर्ण विचारों का बना डाला | आपस का प्रेम समाप्त होने से भारत कमजोर हो गया | विदेशी हमलावरों के सामने भारत हारता रहा | यह भावना अब भी जीवित है | अब तो लोकतंत्रीय शासन-व्यवस्था है | हर बालिग के मत से सरकार बनती है | लेकिन एक नई बात आ गई है | जातिगत आधार पर चुनाव की बात की जाती है | इसका फल बुरा होता है | जातीयता के संकीर्ण स्वार्थों से प्रेरित होकर वे सम्पूर्ण देश का हिट भी भूल जाते है | यह - पूर्ण है की निर्वाचन के समय जातिगत तत्त्व प्रमुख रूप से उभर जाते है | इससे खून-खराबा भी हो जाता है |
संकुचित जातीय भावना का होना न केवल देश की एकता घातक सिद्ध हुआ है, बल्कि यह लोकतंत्र के सफल संचालन और विकास कार्यों में भी बाधा पहुँचता है |