जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे डॉ. आंबेडकर के क्या तर्क
हैं?
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इस तर्क के संबंध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है कि जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक कभी रूप लिए हुए हैं श्रम विभाजन निश्चित ही सभ्य सभ्यता की आवश्यकता है परंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती
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