जाति प्रथा का तत्त्व है-
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किसी भी व्यक्ति, जो हिंदू धर्म के सांस्कृतिक या धार्मिक पहलुओं का पालन करता है, को हिंदू कहा जा सकता है। ऐतिहासिक रूप से यह शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की भौगोलिक, सांस्कृतिक, पहचान के रूप में उपयोग किया गया है।
हिंदू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। 1 सहस्त्राब्दी बीसीई में, फारसी और यूनानी ने सिंधु की भूमि के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया|मध्ययुगीन युग के ग्रंथों ने हिन्दू को भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु (इंडस) नदी के पार या उससे आगे रहने वाले लोगों के लिए पहचान के रूप में परिभाषित किया।16 वीं शताब्दी से, इस शब्द का इस्तेमाल उपमहाद्वीप के निवासियों के लिए करना शुरू हुआ, जो तुर्क या मुस्लिम नहीं थे।डॉ अंबेडकर ने शूद्रों को आर्य के रूप में देखा और आर्यन आक्रमण सिद्धांत को खारिज कर दिया। डॉ अंबेडकर ने इसे बेतुका बताया। उन्होंने अपनी पुस्तक "हू वेर द शूद्र्स?" में कहा था (1946)| आर्यन आक्रमण सिद्धांत बहुत पहले ही मृत होना चाहिए था। भारतीय समाज जातीय सामाजिक इकाइयोंआदिवासी समाज वास्तव में एक ऐसा समाज है, जिसने अपनी परम्पराएं, संस्कार और रीति-रिवाज संरक्षित रखे है। हॉ यह बात सही है कि अपने जल, जंगल-जमीन में सिमटा यह समाज शैक्षिक आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के कारण राष्ट्र की विकास यात्रा के लाभों से वंचित है। डॉ. रमणिका गुप्ता आदिवासियों के विषय में अपना अभिमत व्यक्त करते हुए लिखती हैं, ”यह सही है कि आदिवासी साहित्य अक्षर से वंचित रहा, इसलिए वह उसकी कल्पना और यथार्थ को लिखित रूप से न साहित्य में दर्ज कर पाया और न ही इतिहास में। हॉ लोकगीतों, किंवदन्तियों, लोककथाओं तथा मिथकों के माध्यम से उसकी गहरी पैठ है।“
अनुसूचित जाति (अनुसूचित जातियों) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) भारत में ऐतिहासिक रूप से वंचित लोगों के लिए आधिकारिक शब्द हैं। ये शब्द भारत के संविधान में मान्यता प्राप्त हैं और इन शब्दों के तहत विभिन्न समूहों को एक या अन्य श्रेणियों में नामित किया गया है। भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन की अधिकांश अवधि के लिए, उन्हें शोषित वर्ग के रूप में जाना जाता था। आदिवासी (या "मूल निवासियों") को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के नाम से जाना जाता है| अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति भारत के सबसे वंचित सामाजिक-आर्थिक समूहों में से हैं।अनुसूचित जाति वह जातियां हैं जो अस्पृश्यता की पुरानी परंपरा से उत्पन्न होने वाली अत्यधिक सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन से ग्रस्त हैं। उनके हितों की सुरक्षा के लिए और त्वरित सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विशेष विचार की आवश्यकता है। इन समुदायों को संविधान के अनुच्छेद 341 के खंड 1 में निहित प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित किया गया था।
यह सच है कि दलित तबका शिक्षा, विकास तथा धनार्जन के मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया, किन्तु ऐतिहासिक तथ्य यह है कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए पहला विद्रोह तिलका मांझी ने सन् 1824 में उस समय किया था, जब उन्होंने अंग्रेज़ कमिश्नर क्लीवलैण्ड को तीर से मार गिराया था। सन् 1765 में खासी जनजाति ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध विद्रोह किया था। सन् 1817 ई. में खानदेश आन्दोलन, सन् 1855 ई. में संथाल विद्रोह तथा सन् 1890 में बिरसा मुंडा का आन्दोलन अंग्रेज़ों के विरूद्ध आदिवासियों के संघर्ष की गौरव गाथाएं हैं, किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि इतिहासकार 1857 ई. को ही नवजागरण का प्रस्थान बिन्दु मानते हैं और आदिवासियों के सशस्त्र विद्रोह की उपेक्षा कर देते हैं।
”भिलाई वाणि“ पत्रिका के आदिवासियों के शोषण का चित्र खींचते हुए ”यहां सब बिकता है“ शीर्षक से लेख में लिखा है, ”करोड़ों रूपयों का प्रसाधन, प्रकृति खनिज सम्पदा गरीब तबके के बेसहारा लोग छोटे-छोटे आरोपों व संघर्ष में फंसकर अपराधी के रूप में सालों-साल जेलों में सड़ते रहते हैं, वहीं धन-बल वाले करोड़ों रूपयों का घोटाला करने के बाद भी खुलेआम घूमते दिखते हैं।
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि आदिवासी देश की कुल आबादी का 8.14 प्रतिशत भूभाग पर हैं और भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल के 15 प्रतिशत भूभाग पर ये निवास करते हैं। भारत का संविधान आदिवासी अथवा अनुसूचित जनजाति समाज को अलग से परिभाषित नहीं करता किन्तु संविधान के अनुच्छेद-366 (25) के अन्तर्गत ”अनुसूचित“ का सन्दर्भ उन समुदायों में करता है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद-342 में अनुसूचित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद-342 के अनुसार अनुसूचित जनजातियां वे आदिवासी या आदिवासी समुदाय या इन आदिवासी समुदायों का भाग या उनके समूह हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा इस प्रकार घोषित किया गया है। किसी समुदाय के अनुसूचित जनजाति में विशिष्टीकरण के लिए पालन किए गए मानदण्ड हैं, आदिम लक्षणों का होना, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक बिलगांव, वृहत्तर समुदाय से सम्पर्क में संकोच और पिछड़ापन। यह दुखद तथ्य हैं कि आदिवासी समाज की 52 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करती है तथा 54 प्रतिशत आदिवासियों के पास आर्थिक सम्पदा, संचार और परिवहन की पहुंच रही है।