जाति व राजनीतिक के संबंधों के सकारात्मक एवं नकारात्मक आयामों का वर्णन कीजिए
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भारत में राजनीति और जाति आपस में एक दूसरे से काफी जुड़ी हुई है। हालांकि एक संस्था के तौर पर जाति, काफी हद तक समाप्त हो चुकी है, किंतु अभी भी यह लगभग असंभव है कि राजनीति में जाति की भूमिका को दरकिनार किया जा सके। ऐसा मुख्यत: ‘संख्याबल की राजनीति’ के बढ़ते महत्व के कारण है। दिए गए मुहावरे थोड़े बहुत अंतर के साथ लगभग समान हैं: जाति का राजनीतिकरण जाति पर आधारित राजनीतिक समर्थन जुटाने से संबंधित है, जबकि राजनीति का जातिकरण इसके परिणामस्वरूप जाति आधारित क्षेत्रीय दलों के उभरने के रूप में सामने आता है।
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आधुनिक लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली प्रत्येक वयस्क को मतदान का अधिकार प्रदान करती है। इससे उन दमित जातियों की आकांक्षाएं एवं जागरूकता बढ़ती है जो सत्ता में बराबर की भागीदारी चाहती हैं। इस प्रकार, राजनीतिक भागीदारी सामाजिक एकजुटता का एक महत्वपूर्ण साधन बन जाती है। प्रतिक्रिया के रूप में, उच्च जातियाँ भी कई बार जाति के नाम पर वोट डालती हैं ताकि समाज में अपनी पारंपरिक स्थिति की रक्षा कर सकें।
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