जातीयता को परिभाषित है
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जातीय समूह मनुष्यों का एक ऐसा समूह होता है जिसके सदस्य किसी वास्तविक या काल्पनिक सांझी वंश-परंपरा के माध्यम से अपने आप को एक नस्ल के वंशज मानते हैं।[1][2] यह सांझी विरासत वंशक्रम, इतिहास, रक्त-संबंध, धर्म, भाषा, सांझे क्षेत्र, राष्ट्रीयता या भौतिक रूप-रंग (यानि लोगों की शक्ल-सूरत) पर आधारित हो सकती है। एक जातीय समूह के सदस्य अपने एक जातीय समूह से संबंधित होने से अवगत होते हैं; इसके अलावा जातीय पहचान दूसरों द्वारा उस समूह की विशिष्टता के रूप में पहचाने जाने से भी चिह्नित होती है।[3][4]
"चैलेंजेज़ ऑफ़ मेशरिंग ऐन एथनिक वर्ल्ड: साइंस, पोलिटिक्स, एंड रीएलिटी" नामक स्टैटिसटिक्स कनाडा और द यूनाइटेड स्टेट्स सेन्सस ब्यूरो (अप्रैल 1-3, 1992) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन के अनुसार, "जातीयता मानव जीवन में एक आधारभूत उपादान है: यह मानव अनुभव का एक अंतर्निहित तथ्य है।"[5] यद्यपि, मानवविज्ञानी फ्रेडरिक बार्थ और एरिक वुल्फ जैसे कई सामाजिक वैज्ञानिक जातीय पहचान को सार्वभौमिक नहीं मानते हैं। वे जातीयता को मानव समूह में अंतर्निहित एक महत्वपूर्ण गुण मानने के बजाए, इसे एक विशिष्ट प्रकार की अंतर-समूह पारस्परिक क्रिया का उत्पाद मानते हैं।[6]
जातीयता समाज मे व्याप्त एक व्यापक बुराई है ।।।।