जिंदा रहने के कठिन जतन में
पाँव बढ़ाए आगे जाता।
घर की खपरैलों के नीचे
चिड़ियाँ भी दो-चार चोंच खोल
उड़ती-छिपती थीं
खुले हुए आँगन में फैली
कड़ी धूप से।
बड़े घरों के श्वान पालतू
बाथरूम में पानी की हल्की ठंडक में
नैन मूंदकर लेट गए थे।
कोई बाहर नहीं निकलता
साँझ समय तक
थप्पड़ खाने, गरम हवा के
संध्या की भी चहल-पहल ओढ़े थी
गहरे सूने रंग की चादर
गरमी के मौसम में।
-शकुंत माथुर
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can't understand in Hindi sorry
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