"जो देश हरा भरा होगा, वह धनी और सुखी होगा" इस कथन का अभिप्राय स्पष्ट किजीए
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उसको विश्वास है कि अभी वो कमज़ोर नहीं है। अपितु उसके अंदर जीवन को जीने के लिए उत्साह, प्रेरणा व ऊर्जा कूट-कूट कर भरी है। एक मनुष्य तभी स्वयं का अंत मान लेता है जब वह अपने अंदर की ऊर्जा को क्षीण व उत्साह को कम कर देता है। प्रेरणा जीवन को ईंधन देने का कार्य करती है, जब ये ही न रहे तो मनुष्य का जीवन कैसा? परन्तु ये तीनों प्रचुर मात्रा में उसके पास हैं। तो कैसे वह स्वयं का अंत मान ले। इसलिए उसका विश्वास है कि वो अभी अंत की ओर जाने वाला नहीं है।
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