जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है।
अब उफनते ज्वार का आवेग मदिम हो चला है,
एक हलका-सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है.
यह शिला पिघले ना पिघले, रास्ता नम हो चला है।
क्यों कर आकाश का मनुहार,
अब तो पथ यही है।
क्या भरोसा, काँच का घर है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है अधूरी छूट जाए.
एक समझौता हुआ था रोशनी से टूट जाए
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है,
यह लड़ाई, जो कि अपने आपसे मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पड़ी है,
यह पहाड़ी पाँच क्या चढते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे दवार,
अब तो पर्थ यही है।
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जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है|
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है |
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है|
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है |
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