ज्वाला कोशिकाओं के क्या कार्य हैं
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Explanation:
संघ प्लैटीहेल्मिन्थीज के सदस्यों में ज्वाला कोशिकाएँ या आदि वृक्क देह खण्डों में पाये जाते हैं । ज्वाला कोशिका की गुहा में कशाभों का एक गुच्छा होता है । यह दीपक की लौ के समान हिलता रहता है और उत्सर्जी पदार्थों को हटाता रहता है
अकशेरुकी उत्सर्जक अंग (invertebrate excretory organs)- अमीबा, पेरेमीशियम आदि एककोशिकीय (unicellular) जीवों के शरीर के भीतर कुंवनशील रिक्तिकाएँ (contractile vacuoles) पाई जाती हैं। इनके भीतर आसपास के जीवद्रव्य (protoplasm) से चूषित जल इकट्ठा होता रहता है। यह जल जब मात्रा से अधिक हो जाता है तो समय समय पर अपने आप ही बाहर निकल जाया करता है। यह अतिरिक्त जल यदि कोशिका से बाहर न निकले तो कोशिका फूलते-फूलते फट जा सकती है। कोशिका फटने से जीव की मृत्यु हो जाएगी। प्राटोज़ोआ के उत्सर्जित जल मंफ मुख्य पदार्थ अमोनिया होता है।
किंचित् जटिल, और बहुकोशिकीय (mulitcellular) जंतुओं का आदिम रूप (primitive form) हाइड्रा माना जाता है। इन जंतुओं के उत्सर्जक अंग कुछ भिन्न ढंग से कार्य करते हैं। इनके शरीर की बाह्म त्वचा में अनेक छिद्र होते हैं, जिनसे होकर वर्ज्य पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं।
उत्सर्जक अंगों की जटिलता का दर्शन हमें चिपिट क्रिमियों (ftatworms) में होता है। इनके शरीर में नलिकाओं या ग्रंथियुक्त सरणियों (glandular canals) की एक व्यवस्था (सिस्टम) पाई जाती है। ये सरणियाँ शरीर भर में शाखा प्रशाखाओं के रूप में फैली और बाह्म त्वचा से जुड़ी रहती हैं। इन्हीं सरणियों से होकर मल शरीर के बाहर निकलता रहता है। इन नलिकाओं के मुख पर, भीतर की ओर, रोमकों (cilia) की एक कलँगी (uft) पाई जाती है, जिनके लहराने से एक प्रकार का प्रवाह या लहर सी उठती है, इसी प्रवाह के कारण मल शरीर से बाहर निकल जाता है। रोमकीय सरणि के मुख के पास कुछ कोशिकाएँ पाई जाती है, जिन्हें ज्वाला कोशिका (flame cells) कहते हैं। इनका यह नाम करण इस कारण हुआ है कि रोमकों की लहर मोमबत्ती के प्रकाश की भाँति उठती बैठती रहती है। चिपिट क्रिमियों के शरीर से निकलनेवाले वर्ज्य पदार्थो में कार्बन डाइ-ऑक्साइड और अमोनिया-प्रमुख हैं। उत्सर्जन की इस प्रक्रिया को आदिवृक्कक तंत्र (protonephridal system) कहा गया है।
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