जीवों में जाति उद्भवन की प्रक्रिया कैसे सम्पन्न होती है?
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Explanation:
1. अनुवांशिक विचलन = किसी एक स्पीशीज की उतरोतर पीढियों में सापेक्ष जीन्स की बारम्बारता में अचानक परीवर्तन का होना ही अनुवांशिक विचलन कहलाता है उतरोतर पीढियों में सापेक्ष जीन्स की बारम्बारता में अचानक परीवर्तन का कारण गुणसुत्रो की संख्या में परिवर्तन , डी-एन-ए में परिवर्तन के कारण होता है।
2. प्राकृतिक वरण = कोई जीव अपने पर्यावरण के प्रति बहुत अच्छे तरीके से अनुकुलित होते है। यह जीव बहुत अधिक संतान को उत्पन्न करते है और अपनी उतरजिविता को बनाए रखते है प्राकृतिक वरण के दवारा उत्पन्न संतति में विभिन्ताए होती है और यदि यह विभिन्ताए अपनी मूल गुणों से बहुत अधिक हो तो जीव जींस में बहुत अधिक परिवर्तन होता है और जीव जो उत्त्पन्न होता है वह बहुत अधिक भिन्न होता है और नयी जाति का उद्भव होता है। यदि गुणसुत्रो की संख्या में परिवर्तन बहुत अधिक हो तो डी-एन-ए में परिवर्तन भी पर्याप्त होता है और उन दोनों स्पीशीज के सद्स्यो की जनन कोशिकाए संलयन करने में असमर्थ होती है जिसके कारण नयी जाति का उद्भव होता है।
3. भोगोलिक पथक्करण = भोगोलिक आकृति जैसे जी नदी ,पहाड़ आदि जो की एक स्पीशीज के सद्स्यो के बीच जींस के प्रवाह को रोकते है जिसके कारण किसी एक स्पीशीज के जीव अलग अलग होकर दो स्पीशीज का निर्माण करते है इस प्रकम को भोगोलिक पथक्करण कहते है। लैगिक जनन करने वाले जीवो में भोगोलिक पथक्करण के कारण ही जाति उद्भव होता है।
स्थानीय समष्टि में विभिन्नता
जब कोई उपसमष्टि भोगोलिक पथक्करण के कारण एक स्थान से दुसरे स्थान में चला जाता है अर्थात् अप्रवास करता है वह नए स्थान को अपना आवास बना लेता है और उस निवास की किसी उपसमष्टि के साथ जनन करता है जिसके कारण जीन का प्रवाह होता है और इससे उत्पन्न जीव में विभिन्नता आ जाती है।
विकास एवं वर्गीकरण
जीन किसी प्राणी में लक्षण के लिए जिम्मेदार होते है। अलग अलग जीवों के मध्य समानताएँ इन जीवों को एक समूह में रखने और उनके अध्ययन का अवसर देती हैं।