Social Sciences, asked by suteshkumar954, 3 months ago

ज्वारीय वन और उष्णकटिबंधीय पर्वतीय वन​

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Answered by sanjay047
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Explanation:

किया गया है –

1. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forest)

2. उष्ण कटिबन्धीय आर्द्रपर्णपाती वन (Tropical Dry Deciduous Forest)

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन –

4. कँटीले वन (Themy Forest)

5. पर्वतीय वन (Mountain Forest)

6. ज्वारीय वन (Tidal Forest) तथा

1. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन –

ये वन भारत के उन अत्यधिक आर्द्र एवं उष्ण भागों में मिलते हैं, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 200 से.मी. से अधिक, सापेक्ष आर्दता 70 प्रतिषत से अधिक तथा औसत तापमान 240 के आसपास रहता है । उच्च तापमान, अधिक वर्षा और अपेक्षाकृत अल्पकालीन शुष्क ऋतु के कारण ये वन अत्यंत सघन तथा ऊँचे होते हैं । ऐसे पेड़ों की ऊँचाई 60 मीटर से भी अधिक होती है । विभिन्न जाति के वृक्षों के पत्तों के गिरने का समय भिन्न होता है, जिसके कारण संपूर्ण वन हमेषा हरा रहता है । इन वनों में अनेक जाति के पेड़ पाये जाते हैं । यद्यपि इसकी तुलना विषुवतीय प्रदेष की वनस्पति से की जाती है । लेकिन यह पूर्णरूपेण विषुवतीय नहीं है, क्योंकि इनके अक्षांषीय विस्तार अलग होने के साथ-साथ वहाँ संवहनीय वर्षा का भी अभाव है। इन वनों में पाये जाने वाले महत्वपूर्ण वृक्षों में, रबड़, महोगनी, एबोनी नारियल, बांस, बेंत तथा आइसवुड प्रमुख हैं । ये वन मुख्यतः 4 क्षेत्रों में पाये जाते हैं –

(क) अण्डमान निकोबार द्वीप समूह

(ख) पूर्वोत्तर भारत (असम, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा)

(ग) पश्चिमी घाट (मालावार प्रदेष), तथा

(घ) हिमालय का तराई क्षेत्र

इन वनों का क्षेत्रफल 46 लाख हेक्टेयर है । अत्यधिक सघन वन होने से एवं लकड़ी के अत्यधिक सख्त होने के कारण ये वन आर्थिक दृष्टि से अधिक उपयोगी नहीं हैं । फिर भी हाल के वर्षों मे यहाँ वाणिज्यिक महत्व के पेड़ लगाए जाने पर काफी बल दिया जा रहा है, जिनमें रबड़, तेलताड़ (Palm Oil) एवं महोगनी के वृक्ष प्रमुख हैं ।

2. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन –

इसे ‘उष्ण मानसूनी वन’ भी कहते हैं । ये वन देष के उन सभी भागों में पाए जाते हैं, जहाँ 100 से 200 से.मी. वार्षिक वर्षा होती है । इसके मुख्य क्षेत्र सह्याद्रि या पश्चिमी घाट के पूर्वी ढ़लान, प्रायद्वीपीय उत्तरी-पूर्वी पठार, उत्तर में षिवालिक श्रेणी के सहारे भाबर और तराई में विस्तृत हैं । ये ‘विषिष्ट ‘मानसूनी वन’ हैं । कोपेन महोदय ने इसे ‘सवाना वन’ कहा है । ये पेड़ ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं, इसलिए इसे पतझड़ वन भी कहते हैं ।

इस वन के पेड़ों की ऊँचाई सामान्यतः 30 से 45 मीटर होती है । सागवान (Teak) एवं उत्तरी क्षेत्र में पाये जाने वाला सखुआ(Sal) इसके प्रमुख एवं आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पेड़ हैं । इसका सर्वाधिक क्षेत्रफल मध्य प्रदेष में है । इसके अतिरिक्त बाँस, चंदन (कर्नाटक में), शीषम (उत्तरी भागों में), आम, महुआ, त्रिफला (आँवला, हर्रे और बहेडे) और कत्था भी आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पेड़ हैं । बाँस और सवई घास का उपयोग कागज़ उद्योग में होता है । तेन्दु के पत्ते का उपयोग बीड़ी उद्योग में होता है ।

इस वन के अप्रत्यक्ष लाभ भी हैं, जैसे शहतूत के वृक्ष पर रेषम के कीड़े पाले जाते हैं । रेषम कीड़े का सर्वाधिक पालन कर्नाटक में होता है । इसके अलावा तमिलनाडु, बिहार, मध्यप्रदेष एवं उड़ीसा में भी इसके कीड़े पाले जाते हैं । पलाष, बबूल और पीपल के पेड़ों पर लाह के कीड़े पाए जाते हैं । भारत विष्व का सबसे बड़ा लाह उत्पादक देष है । चंदन के पेड़ कर्नाटक में होते हैं । इन्हीं सब कारणों से भारत के इस वन

को आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन –

ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 100 से.मी. तक होती है । इसमें उत्तर प्रदेष के अधिकतर भाग, पश्चिमी बिहार, उत्तरी तथा पश्चिमी मध्यप्रदेष, महाराष्ट्र के अधिकतर भाग, उत्तरी आंध्रप्रदेष, कर्नाटक की मध्यवर्ती उत्तरी-दक्षिण संकीर्ण पट्टी और तमिलनाडु के पूर्वी भाग सम्मिलित हैं । वर्षा की कमी और जलवायु की विषमता के कारण इनमें ऊँचे पेड़ों का अभाव है। शुष्क सीमान्त पर ये पर्णपाती वन कँटीले वनों और झाडि़यों मे बदल जाते हैं । अत्यधिक चराई के कारण ये वन-क्षेत्र चुनौती भरी समस्या उत्पन्न करते हैं ।

4. कँटीले वन –

यह वन गुजरात से लेकर राजस्थान और पंजाब के उन भागों में मिलता है, जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से.मी. से कम होती है । पठार के मध्यभाग में भी; जहाँ लम्बी शुष्क ग्रीष्म ऋतु मिलती है, ये वन पाये जाते हैं । बबूल, खैर, खजूरी तथा खेजरी इन वनों के कुछ प्रमुख उपयोगी वृक्ष हैं । अत्यल्प वर्षा वाले क्षेत्र में नागफनी और कैक्टस् प्रजातियों की अर्द्धमरुस्थलीय वनस्पति ‘जीरोफाइट्स’ पाये जाते हैं ।

5. पर्वतीय वन –

भौगोलिक दृष्टि से इन्हें उत्तरी या हिमालय वन तथा दक्षिणी या प्रायद्वीपीय वनों में बांटा जा सकता है –

(क) उत्तरी या हिमालय वन – इन वन प्रदेषों में ऊँचाई की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । इस क्षेत्र में ऊँचाई के क्रम के अनुसार उष्ण कटिबंधीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति प्रदेषों तक का अनुक्रम पाया जता है। ये विभिन्न पेटियों में वर्गीकृत हैं, एवं ये सभी पेटियाँ केवल 6 कि.मी. की ऊँचाई में समायी हुई हैं । हिमालय की गिरिपाद षिवालिक की श्रेणियाँ उष्णकटिबंधीय आर्द्रपर्णपाती वनों से आच्छादित हैं । साल यहाँ के प्रमुख वृक्ष हैं। बांस भी यहाँ खूब होता है ।

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