जीवन अनमोल है पर अनुच्छेद
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जीवन परमात्मा का अनमोल उपहार है। यह स्वयं ही इतना दिव्य, पवित्र और परिपूर्ण है कि संसार का कोई भी अभाव इसकी पूर्णता को खंडित करने में असमर्थ है। आवश्यकता यह है कि हम अपने मन की गहराई से अध्ययन कर उसे उत्कृष्टता की दिशा में उन्मुख करें।
ईर्ष्या, द्वेष, लोभ एवं अहम के दोषों से मन को विकृत करने के बजाए अपनी जीवनशैली को बदल कर सेवा, सहकार, सौहार्द जैसे गुणों के सहारे मानसिक रोगों से बचा जा सकता है और मानसिक क्षमताओं को विकसित किया जा सकता है।
इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य जीवन चार तरह की विशेषताएं लिए रहता है। बुद्धैय फलं तत्व विचारणंच/देहस्य सारं व्रतधारणं च/वित्तस्य सारं स्किलपात्र दानं/वाचः फलं प्रतिकरनाराणाम।
अर्थ ात ्- बुद्धि का फल तभी सार्थक होगा, जब उसको पूर्ण विचार करके उस पर अमल करें। शरीर का सार सभी व्रतों को धारण करने से है।
धन तभी सार्थक होगा, जब वह सुपात्र को दान के रूप में मिले और बात या वचन उसी से करें, जब व्यक्ति उस पर अमल करें।
इसी का बेहतर तालमेल जीवन में बिठाना होता है। जो बिठा लेता है, वह भवसागर से पार हो जाता है और जो नहीं बिठा पाता वह दुख में पड़ा गोता खाता रहता है।
आप जब तक इस गहराई को नहीं समझेंगे, अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते हैं। जानना यह भी जरूरी है कि हम अपनी हर धड़कन की रफ्तार को समझें।
aap plz mujhe brainliest mark kar dijiye
ईर्ष्या, द्वेष, लोभ एवं अहम के दोषों से मन को विकृत करने के बजाए अपनी जीवनशैली को बदल कर सेवा, सहकार, सौहार्द जैसे गुणों के सहारे मानसिक रोगों से बचा जा सकता है और मानसिक क्षमताओं को विकसित किया जा सकता है।
इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य जीवन चार तरह की विशेषताएं लिए रहता है। बुद्धैय फलं तत्व विचारणंच/देहस्य सारं व्रतधारणं च/वित्तस्य सारं स्किलपात्र दानं/वाचः फलं प्रतिकरनाराणाम।
अर्थ ात ्- बुद्धि का फल तभी सार्थक होगा, जब उसको पूर्ण विचार करके उस पर अमल करें। शरीर का सार सभी व्रतों को धारण करने से है।
धन तभी सार्थक होगा, जब वह सुपात्र को दान के रूप में मिले और बात या वचन उसी से करें, जब व्यक्ति उस पर अमल करें।
इसी का बेहतर तालमेल जीवन में बिठाना होता है। जो बिठा लेता है, वह भवसागर से पार हो जाता है और जो नहीं बिठा पाता वह दुख में पड़ा गोता खाता रहता है।
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thankyou rishita helping hand for my all doubt in paragraph jivan anmol hai
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