Hindi, asked by ayushraj9050, 2 months ago

जीवन का प्राण तत्त्व होते हुए भी धूल आज केवल ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक बनकर ही क्यों रह गई है ? अपने विचार व्यक्त कीजिए।​

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Answered by shishir303
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जीवन का प्राण तत्त्व होते हुए भी धूल आज केवल ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक बनकर ही क्यों रह गई है ? अपने विचार व्यक्त कीजिए।​

✎... जीवन का प्राण तत्व होते हुए भी धूल केवल ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक इसलिए बनकर रह गई है, क्योंकि गाँव अपनी परंपरा से जुड़े हुए हैं। ग्रामीण परिवेश प्रकृति से जुड़ा होता है, जहाँ धूल-मिट्टी को की परवाह किये बिना खेतों में काम करना पड़ता है। ग्रामीण लोग धूल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते, जबकि शहरी लोग कृत्रिम वातावरण में जीने के आदी होते हैं। शहरी जीवन में मिट्टी का कोई स्थान नहीं होता। यहाँ पर कंक्रीट के जंगल होते हैं, पक्की सड़कें होती हैं, मिट्टी वाली भूमि का अभाव होता है।

शहरों में खेत नहीं होते इसलिए शहरी लोगों को का धूल-मिट्टी से वास्ता ही नहीं पड़ता। शहरी लोग अपने बच्चों को धूल में खेलने से मना भी करते हैं, क्योंकि वह शहर की बनावटी, नकली, चकाचौंध भरे जीवन में जीने के आदी होते हैं। उन्हें गोधूलि का महत्व पता नहीं होता, जो ग्रामीण जीवन का आधार है। शहरी जीवन में थोड़ी बहुत धूल तो मिल सकती है, लेकिन गोधूलि नहीं मिल सकती, जिसका अलग ही महत्व है। यही कारण है कि जीवन का प्राण तत्व होते हुए भी धूल केवल ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक बनकर रह गई है।

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Answered by subedisajana249
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