जीवन में अच्छे चारित्रिक गुणों के विकास हेतु यह आवश्यक है कि स्वयं को बुरे वातावरण से दूर रखा जाए। दूषित वातावरण से वहाँ के निवासी का चरित्र भी गिर जाता है। अपने चरित्र-निर्माण हेतु सदैव भले और बुद्धिमान लोगों का सत्संग करो। बुरे लोगों का साथ छोड़ो तथा अच्छे विचार मन में लाओ। आदर्श चरित्र के लिए मन, वचन और कर्म की एकरूपता का होना भी आवश्यक है। चरित्रवान व्यक्ति की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता। वे परोपदेशक नहीं होते। वे कोरे उपदेश देना नहीं चाहते, उन पर स्वयं अमल भी करते हैं।भारत एक आध्यात्मिक देश है। यहाँ की संस्कृति तथा सभ्यता धर्म-प्रधान है। धर्म से मनुष्य की लौकिक एवं आध्यात्मिक उन्नति होती है। लोक और परलोक की भलाई धर्म से ही संभव है। धर्म आत्मा की उन्नति करता है, उसे पतन की ओर जाने से रोकता है। इस प्रकार धर्म सदाचार का ही पर्यायवाची भी कहा जा सकता है। सदाचार में वे गुण हैं जो धर्म में हैं। सदाचार के आधार पर ही धर्म की स्थिरता संभव है। जो आचरण मनुष्य को ऊँचा उठाए, उसे चरित्रवान बनाए, वह धर्म है, वही सदाचार है। महाभारत में कहा गया है - धर्म की उत्पत्ति आचार से होती है। शील, सत्य, भाषण, अहिंसा, क्षमा, करुणा, परोपकार - जिन्हें सदाचार कहा जाता है, वही धर्म के प्रमुख गुण हैं। अत: सदाचार को धारण करना धर्म के अनुसार ही जीवन व्यतीत करना होता है। सदाचार मनुष्य के संपूर्ण गुणों का सार है जो उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। इसकी तुलना में विश्व की कोई भी मूल्यवान वस्तु टिक नहीं सकती। सदाचार रहित व्यक्ति कभी पूजनीय नहीं हो सकता। सदाचार ही मनुष्य को पूज्य बनाता है। सदाचार के बिना मनुष्य कभी भी अपने जीवन-लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। सत्य भाषण, उदारता, विशिष्टता, विनम्रता, सुशीलता, सहानुभूतिपरकता आदि गुण जिस व्यक्ति में होते हैं वह सच्चरित्र कहलाता है। उस व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा होती है, उसे समाज में आदर और सम्मान मिलता है। वह इस लोक में कीर्ति का पात्र बनता है।
1) चरित्र-निर्माण के लिए क्या जरूरी है?
2) चरित्रवान व्यक्ति की क्या पहचान होती है?
3) गद्यांश में भारत को आध्यात्मिक देश किस आधार पर कहा गया है?
4) महाभारत में आचार के संबंध में क्या कहा गया है?
5) सदाचारी व्यक्ति समाज से क्या पाता है?
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- चरित्र निर्माण के लिए क्या ज़रूरी है?
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१. जीवन में अच्छे चारित्रिक गुणों का विकास जरूरी है।
२. सत्य भाषण, उदारता, विशिष्टता, विनम्रता,सुशीला, सहानुभूति परखता आदि
३.यहां की संस्कृति तथा सभ्यता धर्म प्रधान है।
४.
५. प्रतिष्ठा
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