Hindi, asked by bhatiluckybhati6, 8 months ago

जीवन में बढ़ता तनाव एक समस्या पर अनुच्छेद​

Answers

Answered by alina1234582
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Explanation:

तनाव मूल रूप से ‘विघर्षण’ है । हमारा शरीर लगातार बदलते वातावरण के साथ समायोजन करते हुए इसका अनुभव करता है । हम पर इसके शारीरिक तथा मानसिक प्रभाव होते हैं, जो सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही तरह के हो सकते हैं ।

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सकारात्मक दृष्टिकोण से, तनाव हमें मुश्किल हालात से जूझने की प्रेरणा और ताकत देता है । नकारात्मक प्रभाव देखें तो, यह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का विनाश भी करता है ।

कार्य की समय-सीमा, परिवार की जिम्मेदारी, दर्द, ट्रैफिक जाम, आर्थिक दबाव, साथ ही साथ कार्य-क्षेत्र में पदोन्नति, नया घर और शादियाँ तनाव के ऐसे कई कारण हैं, जो हमें प्रतिदिन प्रभावित कर रहे हैं । यहाँ तक कि हमारे जीवन में होने वाला बहुत सुखद परिवर्तन भी कई बार थकाने वाला हो सकता है ।

परिवर्तन अपने-आप में ही तनावपूर्ण है । साथ ही कोई परिवर्तन न होना भी तनावपूर्ण है । इससे बचा नहीं जा सकता । तो हमें यह सीखने की जरूरत है कि इससे सामजस्य कैसे बिठाया जाए ।

Answered by sdpandey1980
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Answer:

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Explanation:

युवाओं में बढ़ता मानसिक तनाव इस दृष्टि से चिंताजनक है कि कई बार वह तनाव से मुक्ति पाने के लिए मौत को भी गले लगाने से नहीं चूकते। जरा सी नाराजगी, सहनशक्ति का अभाव, घरेलू कलह तथा भावनाओं में बहकर खुदकुशी जैसे कदम उठाना युवाओं में अब कोई नई बात नहीं रह गई है। पिछले तीन दिनों में जम्मू संभाग में तीन युवाओं द्वारा खुदकुशी कर लिया जाना इस बात का द्योतक है। विगत दिवस जम्मू के सतवारी इलाके में एक ऑटो रिक्शा चालक ने संदिग्ध परिस्थितियों में आत्महत्या कर ली। इससे पूर्व जीवन नगर इलाके में भी इन्हीं परिस्थितियों में युवक का शव घर में झूलता हुआ मिला था। प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर व्यक्ति की कोशिश होती है कि वह किसी मुकाम तक पहुंचे। असफल रहने पर उनमें कुंठा इस कदर हावी हो जाती है। कई मामलों में बेरोजगारी, गरीबी व घरेलू कलह भी एक कारण होता है। लेकिन इन सबसे छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या जैसा कदम उठाना कोई हल नहीं है। परेशानियों का नाम ही जिंदगी है। रात के बाद उजियारा यही जिंदगी का सच है। समाज को तनाव मुक्त बनाने के लिए माता-पिता का यह दायित्व बनता है कि बच्चों को उतना ही स्नेह दें जिसमें वह बिगड़ें न। इसके अलावा बच्चों की संगत पर भी विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। कई बार अपेक्षाओं पर खरा न उतरने पर छात्र आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में माता-पिता की बच्चों के प्रति अपेक्षाएं बढ़ी हैं जो गलत हैं। माता-पिता को भी समझना होगा और उन पर किसी प्रकार का मानसिक दबाव बनाने से बेहतर होगा कि बच्चे को अपना भविष्य स्वयं चुनने दें। यह खुशी की बात है कि पिछले कुछ वर्षो से विद्यार्थियों की सोच में काफी बदलाव आया है और अब वह केवल डॉक्टर व इंजीनियर ही नहीं बनना चाहते बल्कि उनका लक्ष्य इससे भी काफी आगे है। किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उम्र कभी भी आड़े नहीं आती। ऐसे में युवा जिंदगी में असफल भी रहते हैं तो उनमें हीन भावना नहीं आनी चाहिए। सत्त प्रयासों से ही कामयाबी आपके कदम चूमती है।

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