जीवन में जब भी कोई उपलब्धि होती है तो उसे दो दृष्टि से देखें। सांसारिक उपलब्धि में परिश्रम और समर्पण के साथ क्रमिक स्थितियाँ बनती हैं और तब एक दिन सफलता मिलती है। अध्यात्म में प्रेम और प्रार्थना के साथ स्थितियाँ आरम्भ होती हैं, लेकिन जो उपलब्धि होती है, तब अचानक छलांग-सी लग जाती है। ऐसा लगता है जैसे कोई विस्फोट हो गया हो। यहाँ की सफलता एक हार्दिक दशा है। संसार की सफलता भौतिक स्थिति है। सुंदरकाण्ड में हनुमान जी माता सीता से मिलकर लंका से लौटे और जिन वानरों को समुद्र तट पर छोड़ कर गए थे, उनसे फिर मिले। यहाँ तुलसीदास जी ने लिखा-हरषे सब बिलोक हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना।। मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा।। हनुमान जी को देखकर सब हर्षित हो गए। और वानरों ने अपना नया जन्म समझा। हनुमान जी का मुख प्रसन्न है और शरीर में तेज विराजमान है। ये श्रीरामचन्द्र जी का कार्य कर आए हैं। मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी।। सब हनुमान जी से मिले और बहुत ही सुखी हुये, जैसे तड़पती हुई मछली को जल मिल गया हो। इस समय हनुमान जी के मुख पर प्रसन्नता और तेज था। हनुमान जी बताते हैं कि कितना ही बड़ा काम करके लौटें, अपनी प्रसन्नता को समाप्त न करें। हमारे साथ उल्टा होता है। हम बड़ा और अधिक काम कर लें तो अपनी थकान व चिड़चिड़ाहट दूसरों पर उतारने लगते हैं। इसलिए खुश रहना आसान है, लेकिन दूसरों को खुश रखना कठिन है। हनुमान जी से सीखा जाए - खुश रहें और खुश रखें।
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। (2)
जीवन की उपलब्धियों को किन-किन दृष्टियों से देखने की जरूरत है? (2)
आध्यात्मिक और सांसारिक सफलताओं में क्या अन्तर है? (2)
प्रस्तुत गद्यांश में निहित संदेश बताइए। (2)
गद्यांश में निहित उद्देश्य और सामान्य मनुष्य की सोच में क्या अन्तर होता है? (2)
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उउददरयहहउउुोकबचदससउतयिोपोकनबवचचगजिोलकजवचवनकोोो
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गहगहगहगहगगहगगहगगहगगह
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