जीवन में विद्रोह का क्या स्थान है
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Explanation:
विद्रोह उत्तरी और मध्य भारत में ब्रिटिश अधिग्रहण के विरुद्ध उभरे सैन्य असंतोष व जन-विद्रोह का परिणाम था| सैन्य असंतोष की घटनाएँ जैसे- छावनी क्षेत्र में आगजनी आदि जनवरी से ही प्रारंभ हो गयी थीं लेकिन बाद में मई में इन छिटपुट घटनाओं ने सम्बंधित क्षेत्र में एक व्यापक आन्दोलन या विद्रोह का रूप ले लिया| इस विद्रोह ने भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के शासन को समाप्त कर दिया और अगले 90 वर्षों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को ब्रिटिश सरकार (ब्रिटिश राज) के प्रत्यक्ष शासन के अधीन लाने का रास्ता तैयार कर दिया|
Answer:
विद्रोह धर्म की आत्मा है। विद्रोह का अर्थ है: समाज से, संस्कार से, शास्त्र से, सिद्धांत से, शब्द से मुक्ति।
आदमी का मन तो प्याज जैसा है, जिस पर पर्त-पर्त संस्कार जम गए हैं। और इन परतों के भीतर खो गया है आदमी का स्व। जैसे प्याज को कोई उधेड़ता है, एक-एक पर्त को अलग करता है, ऐसे ही मनुष्य के मन की परतें भी अलग करनी होती हैं। जब तक सारे संस्कारों से छुटकारा न हो जाए, तब तक स्व का कोई साक्षात नहीं है। और संस्कारों से छुटकारा कठिन बात है। कपड़े उतारने जैसा नहीं, चमड़ी छीलने जैसा है। क्योंकि संस्कार बहुत गहरे चले गए हैं। संस्कारों के जोड़ का नाम ही हमारा अहंकार है। संस्कारों के सारे समूह का नाम ही हमारा मन हैं। विद्रोह का अर्थ है: मन को तोड़ डालना। मन बना है: समाज से। मन है समाज की देन। तुम तो हो परमात्मा से; तुम्हारा मन है समाज से। और जब तक तुम्हारा मन सब तरह से समाप्त न हो जाए, तब तक तुम्हें उसका कोई पता न चलेगा, जो तुम परमात्मा से हो, जैसे तुम परमात्मा से हो। इसलिए विद्रोह--समाज, संस्कार, सभ्यता, संस्कृति--इन सबसे विद्रोह धर्म का मौलिक आधार है।