जीवन धन से ज्यादा असावी दुनिया में कोई वस्तु है वह किस दीपक बंटी की संभव नहीं है जो हवा के साथ से बुझ जाता है पानी के एक बुलबुले को देखते हो लेकिन टूटते भी देर लगती है जीवन में उतार भी नहीं स्वयं भरोसा हो क्या और इसी नश्वरता पर हम अभिलाषा के विशाल भवन बनाते हैं नहीं जानती नीचे जाने वाली राह पर आएगी या नहीं पर सोचते इतना दूर की है मानो
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जीवन धन से ज्यादा असावी दुनिया में कोई वस्तु है वह किस दीपक बंटी की संभव नहीं है जो हवा के साथ से बुझ जाता है पानी के एक बुलबुले को देखते हो लेकिन टूटते भी देर लगती है जीवन में उतार भी नहीं स्वयं भरोसा हो क्या और इसी नश्वरता पर हम अभिलाषा के विशाल भवन बनाते हैं नहीं जानती नीचे जाने वाली राह पर आएगी या नहीं पर सोचते .
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