जिय पै जु होइ अधिकार तो बिचार कीजै
लोक-लाज, अलो-चुटो, थले निरधारिए ।
नैन, श्रीन, कर, पग, सबै पर-बस भए
उतै चलि जात इन्हें कैसे कै सम्हारिए ।
'हरिचंद' भई सच थाँति सों पराई हम
इन्हें ज्ञान कहि कहो कैसे कै निवारिए ।
मन में रहै जो ताहि दीजिए बिसारि, मन
आपै बसै जामैं ताहि कैसे कै बिसारिए ।
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aa raha nahi hai..........
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