Jaal pare jal jaat bahi taji minan ko moh,
rahiman machri nir ko tau na chaarti cho |
What is the meaning of this doha of raheem.
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Answer:
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ ना छाँड़ति छोह।।
भावार्थ — रहीमदास जी कहते हैं कि धन्य है मछली की वह अटूट व अनन्य भावना जो उसके साथ हमेशा साथ रहने वाला जल भी छोड़कर उससे अलग हो जाता है फिर भी मछली अपने प्रिय का विरोह सहन नही कर पाती और अपने प्रिय अर्थात जल का परित्याग नहीं करती और उस से बिछड़ने पर अपने प्राणों का त्याग कर देती है। मछली का जल के प्रति अटूट वा अनन्य प्रेम धन्य है।
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जाल परे जल जात बहि तजि मीनन को मोह रहिमन मछरी नीर को तऊ ना छारती होय।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि मछली और पानी के बीच में अटूट संबंध के बारे में बता रहा जिस प्रकार मछली पानी में रहकर तैरती है ठीक उसी प्रकार जब उससे बिछरती है वह तड़पते रह जाती है। और और अपने प्राणों का परित्याग कर देती है।
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