" Jaan hai toh Jahan hai " is ukti ko dhyan mein rakhte hue koi maulik kahani likhiye
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निर्भय कुमार॥
इस भागदौड़ की जिंदगी में हम अक्सर जिस चीज को सबसे ज्यादा नजरअंदाज करते हैं वह स्वास्थ्य ही है। कामकाज समेत अन्य परेशानियों के बीच हम यह भूल जीते हैं कि जान है तो जहान है। खानपान ही नहीं, लाइफ स्टाइल में आए तमाम बदलावों से भी बीमारियों का खतरा बढ़ा है। यह ठीक ही कहा गया है कि अगर आपका स्वास्थ्य गया तो समझो सब गया। इसलिए इसके प्रति सचेत रहना और समय से चेक-अप करवाते रहना जरूरी है। डॉक्टरों के मुताबिक 40 की उम्र तो इसे नितांत जरूरी समझना चाहिए। इसमें ढील देने से नुकसान खुद व्यक्ति को ही है।
स्वस्थ रहने के लिए आपका शारीरिक रूप से ठीक होना ही पर्याप्त नहीं है। आधुनिक समय में इसकी परिभाषा व्यापक हो गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का इस बारे में कहना है कि वही व्यक्ति स्वस्थ है जो देह के साथ मन और सामाजिक रूप से भी किसी परेशानी में न हो। स्वास्थ्य का यह आधुनिक दृष्टिकोण आयुर्वेद के हालांकि विपरीत है।
यह अलग-अलग नियमों पर आधारित है और पूरी तरह से बंटा हुआ है। इसमें मानव-शरीर की तुलना एक ऐसे मशीन के रूप में की गई है जिसके अलग-अलग भागों का विश्लेषण किया जा सकता है। रोग को शरीर रूपी मशीन के किसी पुरजे में खराबी के तौर पर देखा जाता है। देह की विभिन्न प्रक्रियाओं को जैविकीय और आणविक स्तरों पर समझा जाता है, और उपचार के लिए, देह और मन को अलग-अलग रूप में देखा जाता है।
वहीं अपने आयुर्वेद में स्वास्थ्य की अवधारणा बहुत व्यापक है। आयुर्वेद में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को विकृति माना गया है। आयुर्वेद के जानकारों का मानना है कि उपचार स्वयं प्रकृति से प्रभावित होता है। डॉक्टर और दवा इस प्रक्रिया में सहायता-भर करते हैं। स्वास्थ्य के नियम मूल रूप से ब्रह्मांडीय एकता पर निर्भर हैं। ब्रह्मांड एक सक्रिय इकाई है, जहाँ प्रत्येक वस्तु में बदलाव प्रकृति का सतत नियम है। कुछ भी बिना कारण या अचानक नहीं होता। इसीलिए यह माना गया कि विकृति या रोग होने का कारण प्रकृति के नियमों से ताल-मेल न होना है।
चिकित्सा की पद्धति को भी हो, किसी भी बीमारी का इलाज अगर शुरुआती दौर में करा लिया जाए तो अच्छा रहता है। शुरुआती दौर में रोग संबंधी लक्षण या तत्व अस्थायी होते हैं और साधारण इलाज से इसे ठीक किया जा सकता है। शरीर को ठीक तरह काम करता देख यह संभव है कि आप खुद को स्वस्थ समझते हों।
लेकिन फिर भी कई ऐसी बीमारियों की चपेट में हो सकते हैं, जिसे आप बीमारी नहीं समझते। जैसे जल्द गुस्सा हो जाना, चिड़चिड़ापन या बेचैनी महसूस करना, नींद न आना या रह रह का नींद का उचट जाना और उसके बाद सोने में दिक्कत, पेट संबंधी परेशानियां, उबासियां या लगातार हिचकी आना, ये सब तन-मन में किसी न किसी कमी को कारण ही होते हैं।
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