जब - जब आपदाएं हैं आती,
तब - तब तबाही ही लाती,
इससे हमें नहीं डरना है,
आगे डटकर बढ़ते रहना है,
हहम्मत हमें हदखानी है,
हर च
ु
नौहतयों को हरानी ह
ै|
Answers
यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानम् धर्मस्य, तदात्मनं सृजाम्यहम् || गीता 4/7
अर्थ : हे अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ ।। 7 ।।
व्याख्या: मनुष्य में धर्म और अधर्म दोनों ही प्रवृत्तियाँ होती है। कभी भीतर धर्म बढ़ता है और कभी अधर्म।। कभी हम धार्मिक जैसा बर्ताव करते हैं और कभी अधार्मिक जैसा। लेकिन जब व्यक्ति के अंदर अधर्म का भाव आता है तब उसके मन में उस अधर्म को न करने की एक लहर भी ज़रूर आती है, भले वो उसको ध्यान दे या न दे और अधर्म करने पर बार-बार दिल यह ज़रूर कहता रहता है कि जो कर रहे हो, वो गलत है। ऐसा नहीं कि जब कुछ बड़ा अधर्म करेंगे तभी अंदर की आवाज़ आएगी, ये तो किसी का पेन चुरा लेने पर भी आएगी। ये आवाज़ तब-तब आएगी जब-जब आप कोई भी अधर्म करोगे। लोग इसी आवाज़ को नज़रअंदाज़ करके अधर्म करते हैं। ये अंदर की आवाज़ कुछ और नहीं बल्कि हमारी चेतना में बैठे कृष्ण की प्रेरणा है, जो हमें अधर्म न करने की सलाह देती रहती है यही भगवान् कह रहे है कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होगी तब-तब मैं प्रकट होता हूँ । यही उनके प्रकट होने की प्रक्रिया है क्योंकि वो तो अपनी प्रेरणाओं से हर व्यक्ति के अंदर अपनी अनुभूति का अहसास कराते ही रहेंगे ।
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प्राकृ तिक आपदा तिषय पर 20 से30 शब्दोंमें चार नारा (slogan)तिखें|
जब सारी दुनिया खुद की बचाने में जुटी है जान,
तब ये जान पर खेल, चीन की कर रहे चाल नाकाम।
इनके हौसलों से ही जीतेंगे, कोरोना की ये भीषण जंग,
इन कोरोना योद्धाओं को हम, दिल से करते हैं नमन।।