जब-जब बाँहें झुकीं मेघ की धरती का तन-मन ललका है, जब-जब मैं गुजरा पनघट से, पनिहारिन का घट छलका है। सुन बांसुरी सदा-सदा से हर बेसुध राधा बहकी है, मेघदूत को देख यक्ष की सुधियों में केसर महकी है। क्या अपराध किसी का है फिर क्या कमजोरी कहूँ किसी की, जब-जब रंग जमा महफिल में जोश रुका कब पायल का है। जब-जब मन में भाव उमड़ते, प्रणय श्लोक अवतीर्ण हुए हैं, जब-जब प्यास जगी पत्थर में, निर्झर स्त्रोत विकीर्ण हुए हैं। जब-जब पूँजी लोकगीत की धुन अथवा आल्हा की कड़ियाँ खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।
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barish aane ki khushi h or gao m SB khus h
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