"जब-जब वै सुधि कीजिये, तब - तब सब सुधि जाँहि। आँखिन आँखि लगी रहै, आँखें लागति नाँहि।।"
Answers
Answered by
0
Answer:
जब-जब वै सुधि कीजिये, तब - तब सब सुधि जाँहि। आँखिन आँखि लगी रहै, आँखें लागति नाँहि।।"
Answered by
0
Answer:
संदर्भ : यह श्लोक बिहारी सत्सई से लिया गया है, जिसकी रचना हिन्दी साहित्य के कर्मकांडी कलाकार बिहारी लाल ने की है।
परिवेश : इस श्लोक के माध्यम से बिहारी जी वास्तव में एक निर्लिप्त नायिका की स्थिति को दर्शाते हैं।
व्याख्या : इस श्लोक में एक निर्लिप्त नायिका अपनी सहेली से कहती है कि जब मैं अपने प्रियतम को वापस फ्लैश करती हूँ, तो मैं भी अपना ज्ञान खो देती हूँ।
Explanation:
#SPJ2
Similar questions