Social Sciences, asked by rihalharsh9, 6 months ago

जब कोई व्यक्ति बयान देने के लिए अदालत आता है तो उसको क्या कहा जाता है​

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Answered by kundansalunkhe15
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अदालत ने कोई आदेश पारित कर दिया है और उससे सहमति नहीं है तो ऊपरी अदालत में अपील हो सकती है। यदि आदेश के बाद अपील की तिथि निकल जाती है और तब भी आदेश पर अमल नहीं किया जाता है तो यह अदालत की अवमानना का मामला बनता है और सजा के रूप में जेल तक हो सकती है।

पिछले दिनों अदालत में अचानक न्यायाधीश ने एक प्रतिवादी को गिरफ्तार करने का हुक्म सुना दिया। सभी लोग स्तब्ध थे कि ऐसा क्या हो गया, लेकिन यह मामला अदालत की अवमानना का था। जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा था, वह अदालत के आदेश का पालन करने से चूक गया था, इसलिए इसे अदालत की अवमानना माना गया।

मामला कुछ ऐसा था कि अनीश को अदालत ने पत्नी नीता को 8 लाख रुपए गुजारा भत्ता देने को कहा था, लेकिन अनीश ने उसका पालन नहीं किया। अदालत ने इसके लिए उसे पर्याप्त समय भी दिया, लेकिन उसने गुजारा भत्ता नहीं दिया। अंतत: अदालत ने उसे आदेश दिया कि या तो वह गुजारा भत्ता दें या फिर सजा भुगतने जेल जाए।

वह अदालत के आदेश को न मानकर उसकी अवमानना कर चुका था। कानूनी रूप से देखे तो अदालत की अवमानना दो तरह की होती है-

1.दीवानी अवमानना, जो अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के सेक्शन 2(बी) में आती है। ‘इसमें वे मामले आते हैं, जिसमें यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर अदालत के किसी निर्णय को न माने। भले ही वह डिक्री हो, निर्देश हो या आदेश तो सजा दी जाती है।

2. आपराधिक अवमानना सेक्शन 2 (सी) के तहत आता है, जिसमें लिखे हुए शब्दों से, मौखिक या कुछ दिखाकर किया जा सकता है, जिसमें- किसी अदालत के आदेश को नीचा दिखाने की कोशिश की गई हो या पूर्वग्रह से ग्रसित हो न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की गई हो या, न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करना या करने की मंशा से इसमें रुकावट डाले।

सरल शब्द में यह फैसले या अदालत की प्रतिष्ठा के खिलाफ जानबूझकर की गई अवज्ञा है। एक है प्रत्यक्ष अवमानना और दूसरी है अप्रत्यक्ष अवमानना। अदालत में ही खड़े होकर यदि कोई आदेशों को नहीं माने तो प्रत्यक्ष अवमानना होती है। इसी प्रकार यदि अदालत के बाहर नारेबाजी या उसके खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है तो उसे अप्रत्यक्ष अवमानना माना जाता है।

अदालत की अवमानना एक गंभीर अपराध है। किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वे अदालत का सम्मान करें। अदालतों के प्राधिकार के खिलाफ न हो न ही स्वेच्छाचार करते हुए आदेशों का पालन न करें। अदालतें कानूनी अधिकारों का स्तंभ है और कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।

अदालत की अवमानना को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर और न्यायमूर्ति के एस. राधाकृष्णन की खंडपीठ ने भी सुब्रत राय सहारा के मामले में समझाया था। यदि अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है तो यह न्यायिक प्रणाली की नींव हिला देता है, जो कानून के शासन को दुर्बल करता है। अदालत इसी की संरक्षा और सम्मान करती है। देश के लोगों का न्यायिक प्रणाली में आस्था और विश्वास कायम रखने के लिए यह आवश्यक है।

इसलिए अदालत की अवमानना एक गंभीर अपराध माना जाता है। साथ ही यह याचिकाकर्ता को भी सुनिश्चित करता है कि अदालत द्वारा पारित होने वाले आदेश का अनुपालन होगा। यह उनके द्वारा पालन किया जाएगा, जो भी इससे संबंधित होंगे।

अदालत की अवमानना न्याय के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में प्रयुक्त होती है। जैसा कि उपरोक्त मामले में आदेश का पालन नहीं करने पर पति को जेल भेजने के आदेश दिए गए। एक रात जेल में बिताने के बाद पति ने क्षतिपूर्ति की राशि पत्नी को दी। यह कानून उच्च पदस्थ लोगों के खिलाफ भी सख्ती बरतता है।

फैक्ट : एक आलेख में न्यायपालिका की आलोचना करने पर अरुंधति राय को मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अदालत की अवमानना का नोटिस भेजा है।

वंदना शाह

अधिवक्ता, फैमिली कोर्ट, हाईकोर्ट

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