जब में था तब हरि नहीं, अब हरि है में नाहि ।। अब अंधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहि।।।। रस पहचानिए
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जब में था तब हरि नहीं, अब हरि है में नाहि।
अब अंधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या महि।।
➲ प्रस्तुत पंक्तियों में ‘शांत रस’ प्रकट हो रहा है।
स्पष्टीकरण ⦂
✎... शांत रस की परिभाषा के अनुसार जब किसी काव्य में सांसारिक मोह माया के प्रति ग्लानि या वैराग्य का भाव प्रकट किया जाए तो वहां पर शांत रस होता है। शांत रस में जब सांसारिक मोह माया के प्रति वैराग्य का भाव पैदा होने पर और ईश्वर के प्रति श्रद्धा प्रकट होने पर मन को जो शांति प्राप्त होती हो, वहां शांति रस प्रकट होता है।
इन पंक्तियों में कवि अपने भगवान का महत्व स्पष्ट कर ईश्वर के प्रति भक्ति भाव प्रकट कर रहा है, और उस ये भाव प्रकट करके शांति मिल रही है, इसलिये यहाँ पर ‘शांत रस’ उत्पन्न हो रहा है।
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शांत रस का प्रयोग हुआ हैं।
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