जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति सांकरी, तामे दो न समाहि।।
इस दोहे का भावार्थ
Answers
जवाब-
जब मैं था तब मैं हरि नहीं था, अब मैं हरि नहीं हूं।
मुहब्बत की गली बहुत संकरी है, तम दो ना समाहि। .
तात्पर्य:
संत कबीर दास जी कहते हैं कि यदि "मैं" का अर्थ यह है कि इस हृदय में मेरा अहंकार निवास करता है, तो हरि नहीं थे और अब जब हरि इसमें रहते हैं, तो मेरा अहंकार नष्ट हो गया है। दिल के आकार की यह प्रेम गली इतनी संकरी है कि उनमें से केवल एक ही अंदर समा सकता है। जब तक मेरे पास 'मैं' यानि अहंकार था, तब तक हरि (ब्रह्म) का एहसास नहीं हुआ, लेकिन हरि की प्राप्ति के साथ मेरा अहंकार या अहंकार समाप्त हो गया। जब दीपक के रूप में ज्ञान प्राप्त हुआ, तो मोह या अहंकार का अंधेरा समाप्त हो गया।
व्याख्या-
हरि नहीं दोहा महसूस कर रहा था जब मैं था
कबीर की यह सखी अद्वैतवाद की मूल भावना के अनुरूप है। अद्वैतवाद में कहा गया है कि ब्रह्म और जीव में भेद माया के आवरण के कारण है, अन्यथा दोनों एक हैं। ज्ञान के आगमन से यह पर्दा हट जाता है और ब्रह्म और जीव में कोई अंतर नहीं रहता। प्रस्तुत सखी में हम वही भाव देखते हैं। 'हरि' और 'स्व' में तब तक अंतर है जब तक अज्ञान रूपी अंधकार है, ज्ञान के प्रकाश में दीपक के रूप में दोनों अभेद्य हो जाते हैं।
यह दिए गए दोहे का अर्थ है।
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