जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥
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Answer:
उपर्युक्त दोहे का मतलब यह है कि जब मेरे अंदर अहंकार था तब मेरे हृदय में प्रभु का वास नहीं था और जब मेरे हृदय में प्रभु का वास है तो फिर मेरे हृदय में अंधकार रूपी अहंकार नहीं व्याप्त है अर्थात जिसे ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है तो उसके अंदर के समस्त व्याप्त अंधकार यूपी अहंकार समाप्त हो जाते हैं।
Answer:जब तक अहंकार था तब तक ईश्वर से परिचय नहीं हो सका। अहंकार या आत्मा के भेदत्व का अनुभव जब समाप्त हो गया तो ईश्वर का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हो गया।
Explanation:
मैं - अहंकार (अहंकार)
हरि - गोदी
जब मैं था हरि नहीं: जब अहंकार और अहम (स्वयं का बोध) होता है तो भगवान की पहचान नहीं होती है।
अब हरि है में नन्ही: जब अहंकार समाप्त हो जाता है, तो हरि (भगवान का निवास) की भावना होती है।
अँधेरा - अँधेरा
सारा अंधकार मिट गया है: अहंकार का, माया का, नश्वर संसार के अस्तित्व का अंधकार है।
जब दीपक देखा माही: अहंकार खत्म होने के बाद भीतर का विशाल प्रकाश प्रकट होता है।
इस दोहे का हिंदी में अर्थ: जब तक स्वयं के शाश्वत होने का भाव है, अहंकार (में) रहता है, तब तक इस दुनिया को वास्तविक समझने की भावना है, तब तक हरि (ईश्वर) की प्राप्ति भी संभव नहीं है। अहंकार को दूर करने के बाद ही भगवान के रूप में दीपक के प्रकाश का ज्ञान गायब हो जाता है।
माया, रिश्तों में आसक्ति, जीवन के उद्देश्य से वैराग्य, धूमधाम, भेष, ये सब अंधकार है और ईश्वर के दीपक के प्रकाश से ही इन्हें समाप्त किया जा सकता है। माया और अहंकार परमात्मा को स्वीकार करने में बाधक हैं। माया हमेशा आत्मा को अपने पाश में उलझाए रखती है। माया उसे जीवन के उद्देश्य से भटकाती है और एक ऐसा कृत्रिम आवरण बनाती है जिसमें जीव भूल जाता है कि वह यहाँ कुछ दिनों के लिए अतिथि है और माया इस संसार में सदा रहेगी, वह कभी नहीं मरती। गुरु के सानिध्य में आने से ही माया का बोध होता है और आत्मा इसके जाल से मुक्त होकर ईश्वर के साथ साक्षात्कार करने में सक्षम होती है।