जब सिकंदर साधु के पास पहुंचा तो उसने क्या देखा सिकंदर और साधु की इस घटना को संवाद रूप में लिखिए
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वर्षों से युद्ध लड़ती सिकंदर की सेना बहुत थक चुकी थी। सैनिकों की इच्छा का सम्मान करते हुए सिकंदर ने वापस लौटने का फैसला लिया। मगर भारत से लौटने से पहले वह किसी ज्ञानी व्यक्ति को अपने साथ ले जाना चाहता था। उसे एक पहुंचे हुए बाबा के बारे में पता चला।
सिकंदर दल-बल के साथ वहां जा पहुंचा। बाबा निर्वस्त्र एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठे थे। सिकंदर उनके ध्यान खत्म होने का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद बाबा ध्यान से बाहर निकले, तो सैनिक 'सिकंदर महान-सिकंदर महान' के नारे लगाने लगे।
सिकंदर ने बाबा से कहा, मैं आपको अपने देश ले जाना चाहता हूं। बाबा बोले, मैं तो यहीं ठीक हूं। तुम्हें जहां जाना है, जाओ। एक मामूली से दिखने वाले संत का यह जवाब सुनकर सिकंदर के सैनिक भड़क उठे। सिकंदर ने सैनिकों को शांत करते हुए बाबा से कहा, मैं 'नहीं' सुनने का आदी नहीं हूं। बाबा बिना घबराए बोले, यह मेरा जीवन है, और यह मैं ही तय कर सकता हूं कि मुझे कहां जाना है और कहां नहीं!
यह सुनकर सिकंदर गुस्से से लाल हो गया, और उसने फौरन अपनी तलवार निकालकर बाबा के गले में सटा दी। बाबा अब भी शांत थे। उन्होंने कहा, मैं तो कहीं नहीं जा रहा। अगर तुम मुझे मारना चाहते हो, तो मार दो। मगर आज के बाद से कभी अपने नाम के साथ 'महान' शब्द का प्रयोग मत करना। तुम तो मेरे गुलाम के भी गुलाम हो!
तुम्हारा क्या मतलब है, सिकंदर ने क्रोधित होते हुए पूछा। बाबा बोले, क्रोध मेरा गुलाम है। मैं जब तक नहीं चाहता, मुझे क्रोध नहीं आता। पर तुम क्रोध के गुलाम हो। तुमने कई योद्धाओं को पराजित किया होगा, पर क्रोध से नहीं जीत पाए। बाबा की बातें सुनकर सिकंदर का दर्प चूर-चूर हो गया।