जब सिनेमा ने बोलना सीखा से हमने क्या सीखा है
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सन 1931 से पहले देश में जो फ़िल्मे बनती थीं, उनमें कलाकार अभिनय तो करते थे, पर उनकी आवाज हमें सुनाई नहीं पड़ती थी। 1931 में ऐसी फ़िल्म प्रदर्शित हुई, जिसमें कलाकार की बातें, हँसना, रोना आदि सुनाई देने लगा। यह देखकर ऐसा लगा जैसे सिनेमा ने बोलना सीख लिया है।
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जब सिनेमा ने बोलना सीखा की पाठ व्याख्या 'वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान ज़िंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो। ' देश की पहली सवाक् फिल्म 'आलम आरा' के पोस्टरों पर विज्ञापन की ये पंक्तियाँ लिखी हुई थीं। ... हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था।
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