जब समाज के उच्च और निम्न के क्रम में बांटा गया है तो उसे क्या कहते हैं
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भारत में जाति सर्वव्यापी तत्व है। ईसाइयों, मुसलमानों, जैनों, बौद्धों और सिखों में भी जातियां हैं और उनमें भी उच्च, निम्न तथा शुद्ध-अशुद्ध जातियों का भेद विद्यमान है, लेकिन बात सिर्फ हिन्दू जातियों की इसलिए होती है, क्योंकि हिन्दू बहुसंख्यक हैं और जातियों में फूट डालकर या जातिवाद को बढ़ावा देकर ही सत्ता हासिल की जा सकती है या धर्मांतरण किया जा सकता है। राजनीतिक पार्टियों और कट्टरपंथियों को हिन्दुओं को आपस में बांटकर रखने में ही भलाई नजर आती है।
इस तरह मिला जाति को बढ़ावा : दो तरह के लोग होते हैं- अगड़े और पिछड़े। यह मामला उसी तरह है जिस तरह कि दो तरह के क्षेत्र होते हैं- विकसित और अविकसित। पिछड़े क्षेत्रों में ब्राह्मण भी उतना ही पिछड़ा था जितना कि दलित या अन्य वर्ग, धर्म या समाज का व्यक्ति। पिछड़ों को बराबरी पर लाने के लिए संविधान में प्रारंभ में 10 वर्ष के लिए आरक्षण देने का कानून बनाया गया, लेकिन 10 वर्ष में भारत की राजनीति बदल गई। सेवा पर आधारित राजनीति पूर्णत: वोट पर आधारित राजनीति बन गई। खैर...
इस तरह हिन्दुओं को बांटा गया अन्य धर्म और जातियों में...
'रंग' बना जाति का 'जहर'
वंश आधारित समाज : वैदिक काल में वंश पर आधारित समाज बने, जैसे पूर्व में 3 ही वंशों का प्रचलन हुआ। 1. सूर्य वंश, 2. चंद्र वंश और 3. ऋषि वंश। उक्त तीनों वंशों के ही अनेक उप वंश होते गए। यदु वंश, सोम वंश और नाग वंश तीनों चंद्र वंश के अंतर्गत माने जाते हैं। अग्नि वंश और इक्ष्वाकु वंश सूर्य वंश के अंतर्गत हैं। सूर्य वंशी प्रतापी राजा इक्ष्वाकु से इक्ष्वाकु वंश चला। इसी इक्ष्वाकु कुल में राजा रघु हुए जिसने रघु वंश चला। भगवान राम जहां सूर्य वंश से थे, वहीं भगवान श्रीकृष्ण चंद्र वंश से थे। ऋषि वशिष्ठ ने भी एक अग्नि वंश चलाया था।