जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
जब न तुम से स्नेह के दो कण मिले‚
व्यथा कहने के लिये दो क्षण मिले।
जब तुम्हीं ने की सतत अवहेलना‚
विश्व का सम्मान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
एक आशा एक ही अरमान था‚
बस तुम्हीं पर हृदय को अभिमान था।
पर न जब तुम ही हमें अपना सके‚
व्यर्थ यह अभिमान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
Who is the poet?
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Varanasi from manipuri
MisterPrince23:
Not the right answer
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