जब याद आती है बड़ों के उन सपूतों की कथा,
उनके सखा संगी, विदूषक और दूतों की कथा।
तब निकल पड़ते हैं हृदय से वचन ऐसे दुख भरे-
होवें न ऐसे पुत्र चाहे हो कुल-क्षय है हरे॥
यों तो सभी का बीतता है बाल्यकाल विनोद में,
वे किन्तु सोते-जागते रहते सदा हैं गोद में।
इस भाँति पल कर प्यार में जब वे सपूत बड़े हुए,
उत्पाद उनके साथ ही घर में अनेक खड़े हुए॥
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