जगा एक प्रत्यूष मनोहर। mening
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मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर। द्वार दिखा दूँगा फिर उनको। हैं मेरे वे जहाँ अनंत- अभी न होगा मेरा अंत। -सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' 2021-22 Page 2 वसंत भाग 3 कविता से 1.
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