जग एवं उद्यान को किससे गुजित करना है
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कविता
पुनः नया निर्माण करो- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
By
Amit Kumar Sachin
-
February 26, 2020
0
2511

पुनः नया निर्माण करो – हिंदी कविता
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नया प्रात है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगे,
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई-नई मुसकान भरो।
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरे
मस्त हुए मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नवगान भरो।
कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुंजित जग-उद्यान करो।
सरस्वती का पावन मंदिर
यह संपत्ति तुम्हारी है।
तुम में से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।