Hindi, asked by mamataudagata, 9 months ago

जग-जीवन में जो चिर महान,
सौंदर्य-पूर्ण
और सत्य प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ नाथ,
जो हो मानव के हित समान।​

Answers

Answered by Dharm8055
5

Answer:

जग-जीवन में जो चिर महान,

सौंदर्य-पूर्ण औ सत्‍य-प्राण,

मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ!

जिसमें मानव-हित हो समान!

जिससे जीवन में मिले शक्ति,

छूटे भय, संशय, अंध-भक्ति;

मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!

मिट जावें जिसमें अखिल व्‍यक्ति!

दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा प्रसार,

हर भेद-भाव का अंधकार,

मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ!

मानव के उर के स्‍वर्ग-द्वार!

पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान

करने मानव का परित्राण,

ला सकूँ विश्‍व में एक बार

फिर से नव जीवन का विहान!

रचनाकाल: मई १९३५

---सुमित्रानंदन पंत

Similar questions