जहाँ भी प्रेम ,करूणा और दया है वहां स्त्री मौजूद हैं इस कथन से लेखक का क्या तात्पर्य है
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जहां प्रेम है, वहां समृद्धि है। जहां करुणा है, वहां शांति है। प्रेम को कई रूपों में समझा जा सकता है। प्रेम, वात्सल्य, करुणा, दया के भाव रखने वाला मनुष्य सच्चे अर्थों में संत है। उक्त बातें आनंद मधुकर रतन भवन बांधा तालाब दुर्ग में की धर्म सभा में महासती डॉ. चंद्रप्रभा ने कहीं।
उन्होंने कई प्रेरक प्रसंगों का वर्णन करते कहा कि धर्म सभा में दिए प्रेम की भाषा संसार के सभी प्राणी समझते हैं। मनुष्य नाम के सामाजिक प्राणियों में प्रेम, वात्सल्य, करुणा, सत्संग, दया की भावना होती है। सोचने, समझने और जानने के लिए ईश्वर ने विशेष रूप से प्रदान किया है। प्रेम से वह सारे कार्य हो जाते हैं, मनुष्य जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता है। जहां सभी जीवों के प्रति प्रेम का व्यवहार हो, उस क्षेत्र का आभामंडल पुण्य पवित्र बन जाता है। इस बीच ईश्वर की विशेष अनुकंपा हमारे लिए बनी रहती है।
महासती डॉ. चंद्रप्रभा और जिन प्रभा।